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जनभाषा में न्याय के विषय पर न्यायपालिका का अन्याय

पटना (बिहार)।

न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह एवं विद्वान महाधिवक्ता (बिहार) पी.के. शाही पर भारत संघ की राजभाषा हिंदी का विकास रोकने का गंभीर आरोप पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद
(स्थाई सलाहकार संख्या २७, पटना उच्च न्यायालय) ने लगाया है।
इंद्रदेव प्रसाद ने बताया कि, १ मार्च २०२३ को सीडब्लूजेसी की न्यायिक कार्यवाहियों में न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने उनसे बहुत सारी बातों के अतिरिक्त यह भी कहा-“अगर दो लाइन अंग्रेजी नहीं बोल सकते, तो कल से आपको मेरी अदालत में नहीं आना है।” और उनकी उस बात के समर्थन में विद्वान महाधिवक्ता पी.के. शाही ने भी उसी दिन से उनको सरकारी मुकदमों का संचालन करने से मना कर दिया। अपने एक मौखिक आदेश ५ अप्रैल द्वारा महाधिवक्ता कार्यालय के रिट सेक्शन में पदस्थापित कर्मियों को उस हिंदी आवेदन को लेने से मना कर दिया था, जिस हिंदी आवेदन के साथ उसका अंग्रेजी अनुवाद संलग्न नहीं था, जिसके भय से भयभीत होकर कुछ अधिवक्ताओं ने हिंदी में मुकदमा दाखिल करना बंद कर दिया, तो कुछ पीड़ित पक्षकारों ने अपने-अपने अधिवक्ताओं को हिंदी में मुकदमा दाखिल करने से मना कर दिया, तो कुछ अधिवक्ता एवं पीड़ित पक्षकार हिंदी में मुकदमा दाखिल करते रह गए।
इस प्रकार पटना उच्च न्या. परिसर में हिंदी वर्गों एवं अंग्रेजी वर्गों के बीच युद्ध छिड़ना भी संभावित है। उपरोक्त आरोपों के आधार पर न्यायमूर्ति श्री शाह के विरुद्ध ५० राज्यसभा सदस्य या १०० लोकसभा सदस्य मिलकर महाभियोग की माँग कर सकते हैं और राज्यपाल (बिहार) तथा महाधिवक्ता श्री शाही को बर्खास्त भी कर सकते हैं, जो परिवाद अनन्य संख्या ९९९९४० १२८०६२३०७४२१ (२८ जून २३) में पारित विभागीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी विधि विभाग (बिहार) पटना सचिवालय का अंतिम आदेश एवं उससे उत्पन्न शिकायत पत्र और प्रथम अपील को पढ़ने से तथा उसके समर्थन में दिए गए साक्ष्यों से प्रतीत भी हो सकता है।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)