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जरिया

डॉ.हरेन्द्र शर्मा ‘हर्ष’
बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश)
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चार माह गुजर चुके थे,इस चौकी पर आये, मगर अभी तक पुलिस चौकी के इलाके में पूर्णतया शान्ति कायम थी। कहीं से भी किसी अशुभ वारदात की कोई सूचना अब तक प्राप्त नहीं हुई थी। इससे पुलिसकर्मियों का चिन्तित होना लाजिमी था। चार महीने से आमदनी का जरिया जो बन्द हो गया था। बेचैनी ने जब ज्यादा जोर मारा तो,दिल की कसक चौकी प्रभारी के होंठों पर तैरने लगी। वह अपने अधीन चौकी पर ही तैनात मुख्य आरक्षी से बोला-“यार दीवान जी,यहाँ के बदमाशों को क्या हो गया है। देखो हरामजादे घर में बैठे-बैठे मक्खियां मारे है। लगता है निकम्मे किसी काम के नहीं रहे।”
“…आप ठीक फरमा रहे हैं साब,..लग रहा है साले अपराध करना ही भूल गये हैं। या कहीं से मोटा हाथ मार कर ले आये हैं,पहले उसे ठिकाने लगा रहे हैं।”
“…हा..हा…” के ठहाके के साथ दीवान जी ने भी दरोगा जी की हाँ में हाँ मिला दी। इससे दरोगा जी के अन्दर का दर्द द्रवित होकर फिर टपका-
“….देख भाई मैं तो इस चौकी पर से अपना स्थानान्तरण करा लूँगा। जब इस चौकी पर इन्कम का कोई जरिया ही नहीं है तो फिर इस स्थान पर तैनात रहने से क्या फायदा। यहाँ रहना बेकार है,जब तक इलाके में अपराध नहीं होगा,अशान्ति नहीं फैलेगी,तब तक हमारी आमदनी भी बन्द रहेगी। शान्ति हमारे आमदनी के जरिये के लिए घातक है। यह हमारी इन्कम के रास्ते को अवरुद्व ही करती है।”
“… ठीक है साहब..अब तक आपकी इजाजत की आवश्यकता थी। अब वह भी मिल गयी,अब आमदनी का जरिया चालू हो जायेगा,आप निश्चिन्त रहें।”
यह शब्द कहते हुए दीवान जी के काले-काले मोटे-मोटे होंठों पर एक कुटिल रहस्यमयी मुस्कराहट तैर गई…।

परिचय-डॉ.हरेन्द्र कुमार शर्मा का साहित्यिक उपनाम ‘हर्ष’ है। १९६३ में १ फरवरी को ग्राम चरौरा(जिला- बुलन्द शहर)में जन्में श्री शर्मा का स्थायी बसेरा वर्तमान में बुलन्दशहर में ही है। उत्तर प्रदेश निवासी डॉ.शर्मा को हिन्दी,संस्कृत तथा अँग्रेजी भाषा का ज्ञान है।एम.ए.,बी.एड., एल.एल.बी. और विद्मावाचस्पति आपकी शिक्षा होकर कार्य क्षेत्र-अध्यापन का है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत मंच संचालन, एकांकियों का मंचों पर प्रदर्शन एवं विभिन्न प्रतियोगिताओं को आयोजित कराते हैं। लेखनविधा-गद्म-पद्म दोनों में ही गीत, ग़ज़ल, कविता, कहानी, उपन्यास और लघुकथा आदि रचते हैं। संग्रह में आपके खाते में-मोक्ष की तलाश,मुठ्ठी में कैद,कहानी संग्रह-भोर की किरण सहित उपन्यास-निराशा छोडो़ सुख जियो,जैसा चाहें जीवन पायें एवं पद्म में-हादसों का सफर,चिरागों को जला दो, इन्द्रधनुषी ग़ज़लें आदि हैं। ग़ज़ल-गीत संग्रह के साथ ही आपकी रचनाएं कई दैनिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। अगर सम्मान की बात हो तो डॉ.शर्मा को सम्मान-पुरस्कार में-साहित्य विद्मालंकार,समाज रत्न,साहित्य सरताज,आचार्य,साहित्य श्री,रचना सम्मान, काव्य वैभव और परम श्री सम्मान मिला है। अमेरिकन बायोग्राफिकल इन्स्टीटयूट् के शोध मंडल में सलाहकार होकर हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की मानद सदस्यता भी है। इनकी विशेष उपलब्धि-सामाजिक कार्यों में प्रतिभागि ता करना,विभिन्न संस्थाओं की स्थापना,नाटक व नुक्कड़ नाटकों का प्रदर्शन है।

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