सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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शामे ग़म जगमगा दे ज़रा सोणिए।
अपना जलवा दिखा दे ज़रा सोणिए।
ह़सरत’-ए-दीद पागल न कर दे कहीं,
रुख़ ‘से पर्दा ‘हटा दे ज़रा सोणिए।
भूल’ जाएँ ‘सदा के लिए मयकदा,
जाम ऐसा पिला दे ज़रा सोणिए।
एक ‘मुद्दत से वीरानियाँ हैं यहाँ,
बज़्मे दिल को सजा दे ज़रा ‘सोणिए।
तीरगी जिससे मिट जाए घर की मिरे,
दीप ‘ऐसा जला ‘दे ज़रा सोणिए।
बन’ चुका है ‘जहन्नुम तिरे हिज्र ‘में,
घर’ को ‘जन्नत बना ‘दे ज़रा सोणिए।
भूल’ पाए न जिसको के क़ल्ब ए फ़राज़,
रंग ‘ऐसा ‘जमा दे ज़रा सोणिए॥