कुल पृष्ठ दर्शन : 209

You are currently viewing जाकी रही भावना जैसी

जाकी रही भावना जैसी

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
*******************************************

‘जाकी रही भावना जैसी,प्रभु मूरत देखी तिन तैसी’ इसका मतलब जिसकी जैसी भावना उसी के अनुरूप प्रभु (श्रीराम) को उसी रूप में देखा। यह पंक्ति आजकल के मौजूदा स्वरुप में उपयोग होती है। जिसका जो भाव होता है वह परिस्थिति को उसी के आधार पर आंकलन करने लगता है। आजकल यह केवल देखने तक ही सीमित नहीं है,यह विषय सुनने में भी आता है, जिसका जीता-जागता उदहरण मैं हूँ।
मेरी पत्नी ने बाज़ार से क्या-क्या लाना है उसकी सूची करीब-करीब दस बार मुंह जुबानी कह सुनाई। मैं बोला,-भागवान जरा लिखकर दे दो तो ठीक रहेगा,आपकी इतनी बड़ी सूची,उसके साथ हर एक आइटम पर आपका विशेष कमेंट मेरे लिए याद रखना मुश्किल है।
पत्नी बोली,-आपको कैसे याद नहीं रहेगा अगर कुछ चीज़ भूल गए तो फिर दुबारा बाज़ार जाकर ले आइएगा।
मैंने बाज़ार जाते हुए पत्नी द्वारा मुंह जुबानी दी गई सामान की सूची,जो वह कम से कम १० बार दोहराई थी,को मन ही मन दोहरा रहा था। मैं बाज़ार में जाकर घूम-घूमकर पत्नी द्वारा बोली गई लम्बी सूची का लगभग हर एक सामान जितना मुझे याद था,और उसके साथ किए गए कमेंट को ध्यान में रखते हुए एक-एक को ख़रीदा। जैसे मैदा बारीक़ लाना था,लौकी और बैंगन अच्छा देखकर लाना था, प्याज़-लहसुन नहीं लाना था,इत्यादि-इत्यादि…।
मैं बाज़ार से लाए सामान की थैली पत्नी को सौंप कर मन ही मन खुश हो रहा था कि,चलो आज सारा सामान एकदम सही-सही लाया हूं,और हाथ-मुंह धोकर,पत्नी से चाय की फरमाईश कर कुर्सी पर बैठा ही था कि उनकी गरजदार आवाज़ सुनाई पड़ी। “आपसे एक भी काम ठीक से नहीं हो सकता है,पता नहीं ऑफिस में कैसे काम करते हैं…?” मुझे समझ नहीं आया कि मुझसे ऐसी क्या गलती हो गई!
वह अपने पाँव पटकते हुए मेरे पास आई। थी तो वह मोटी-ताज़ी,ऊपर से इतने जोर-जोर से पाँव पटकने से लगा कि घर में भूचाल आ गया है। मैं ज्यादा तनाव बर्दाश्त नहीं कर पाता हूँ,तो मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी।
वह मेरे पास आकर बोली,मैंने आपको सूजी मोटी पिसी हुआ लेने को बोला था,पर आप सूजी बारीक़ लाए हैं। जाइये दुकान में वापस कर मोटी पिसी सूजी लाइए। मैंने आपको बताया था कि घर में केवल लौकी और बैंगन है,अगर आपको बाज़ार में इसके अलावा कोई और सब्जी मिलती है तो लेकर आइएगा,पर आप अधिक मात्रा में लौकी और बैंगन ही लाए हैं। अब आपको रोज़-रोज़ लौकी और बैंगन की सब्जी खानी पड़ेगी,जब तक यह समाप्त नहीं हो जाती है। खाते समय मुंह मत बिचकाइएगा और फिर निराश-हताश होकर आप अपने स्टाइल से बोलते हैं,आज भी लौकी…।
मैं आपको बोल देती हूँ कि यह सब नौटंकी अब घर में नहीं चलेगी। आपको मैंने बार-बार प्याज-लहसुन लेने को मना किया था,पर आप हैं कि दो-दो किलो प्याज-लहसुन लेकर आए। आपको ठीक से सुनाई तो पड़ता है न,मैंने गिन-गिन कर १० बार जो-जो चीज नहीं लाने को बोली थी, आप वो-वो चीज ले आए,और जो सामान लाने को बोली थी वो तो आप नहीं लाए। पता नहीं कि आपके दिमाग में क्या भरा है, इतनी बार मेरे द्वारा बोलने के बाद भी एक काम भी ठीक तरह से नहीं कर पाते हैं।’
अब मैं अपनी पत्नी से कैसे बोलता कि आजकल जब ऑफिस में मैं अपने बॉस के पास खड़ा होता हूँ,तब बॉस अपने आदेश में क्या बोलते हैं यह मुझे सुनाई नहीं पड़ता है, केवल मेरे कान में भांव-भांव की आवाज़ बस आती रहती है,और लगता है कि मेरे कान से धुआं निकल रहा है। इसीलिए मुझे अनेक बार बॉस से डांट खानी पड़ती है। ठीक उसी प्रकार पत्नी जो भी बोलती है,मुझे ठीक से पूरा-पूरा सुनाई नहीं पड़ता है। इसीलिए मेरे मन में जो भी आता है,कर देता हूँ और अंत में उनसे भी डांट खानी पड़ती है।
पता नहीं जो सामान नहीं लेना है उसका नाम मेरी पत्नी बार-बार क्यों उच्चारण करती है समझ में नहीं आता। एक मैं हूँ,पता नहीं मेरे दिमाग में क्या चलता रहता है जो सामान नहीं लाने को कहा जाता,उसे लेकर आ जाता हूँ और जो सामान बोलती है,पता नहीं क्यों नहीं ला पाता हूँ…!
चिकित्सक के पास जब मुझे जाँच करवाने के लिए पत्नी मुझे ले गई,तो चिकित्सक ने बहुत बारीकी से निरीक्षण किया और लगता है कि उन्हें मेरी तबियत ठीक लगी। तब चिकित्सक ने पूछा कि,अब बतलाइए कि आपकी समस्या क्या है ?
तब पत्नी ने एक साँस में मेरे सारे लक्षण
चिकित्सक को बयान कर दिए और वो भी दो से तीन बार…। लगता है कि,चिकित्सक समझदार था। उसने उसकी सारी बातें ध्यान से सुनी। फिर एक कागज़ पर दवाई लिखकर पत्नी के हाथों में दी और कहा कि इसे आप रोज सुबह और शाम को ले लेना। इससे आपको हर वक्त उनींदी लगी रहेगी और आप रात के अलावा दिन में भी आराम से सो सकेंगी। इससे आपको बात-चीत करने में भी रूचि नहीं रहेगी,जिससे आपके पतिदेव को आराम हो जाएगा और उनकी सारी समस्या स्वत: समाप्त हो जाएगी। मेरी पत्नी चौंक गई।
चिकित्सक को बोली,-पर मुझे तो कुछ नहीं हुआ है…।
चिकित्सक बोले कि,-आप इतना ज्यादा बात करतीं हैं कि आपके पति कुछ बोल नहीं पाते हैं।फलस्वरूप घर और ऑफिस में उनके मन में जो भी बातें घूमते रहती है,वे वही काम करते हैं।
लगता है कि वह चिकित्सक नहीं,भगवान था। मैं रोज सुबह-शाम दोनों वक्त पत्नी को नियमित दवाई देने लगा। कुछ ही दिन में मेरी सुनने की क्षमता सुधर गई और अब अपने बॉस द्वारा दिए गए सारे आदेशों को सुन पाता हूँ और उसका पालन करता हूँ। घर में पत्नी हर समय उनींदी में रहने के कारण मुझसे ज्यादा बातें नहीं कर पाती है और न ही एक बात बार-बार दोहराकर मेरा दिमाग ख़राब करती है। आजकल मैं पत्नी द्वारा एक बार में कही गई सारी बातें समझ जाता हूँ, और मुझे अब और कोई भी समस्या नहीं है…।

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।

Leave a Reply