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जीते सब अपने ढब से

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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जीते हैं सब अपने ढब से,
अपने-अपने बस मतलब से…।

चढ़ते जाते इक-इक जीना,
बुलंदियों की लगी तलब से…।

भरा हुआ भर-भर ले जाता,
जरूरत वाला बैठा कब से…।

कहते हँस कौआ दोनों वह,
सुंदर सच्चा अच्छा सबसे…।

शायर की भरमार हुई है,
मोबाइल आया है जबसे…।

किस्मत खुलने इंतजार में,
बैठे हैं हम जन्मे तब से…।

बम गन तोप दंग रह जाते,
कागज़ कलम के करतब से…।

इतिहास वही पक्का रचता,
कहते सनकी जिसे अजब से…।

ऊपर वाले की रहमत छोड़,
दुनिया में न कुछ भी गजब से…।

हर दिल में ईश्वर है बसता,
सबकी इज्जत करो अदब से…।

क्या शिकवा और क्या शिकायत,
मत करना कभी अपने रब से…॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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