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ज़िन्दगी गुनगुनाने लगी

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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नाम खुद की हथेली पर उनका लिखा,तब से बेचैन वो नींद जाने लगी।
उनसे पूछा नहीं पर पता चल गया,ज़िन्दगी नेह में गुनगुनाने लगी।

ज़ादुई रंग शायद है दिल में चढ़ा,
अड़ गये हाथ उनका वो कल थामने।
बात ऐसी हुई खाइयाँ थी बहुत,
साथ में ऐसा कुछ था कुँआ सामने।
हाल ज़ोखिम भरा राह में ख़ार थे,
ज़िन्दगी रात दिन ही सताने लगी।
उनसे पूछा नहीं पर पता चल गया,
ज़िन्दगी नेह में गुनगुनाने लगी॥

वो सँवरते हुए भी बिखरती रही,
आइना भी दिखाया मुलाक़ात में।
मन में आया तभी बेवफा ज़िन्दगी,
फिक्र बिन हम जियें चाँदनी रात में।
जो सहेली थी अब तक पहेली बनी,
प्रश्न था सामने आजमाने लगी।
उसने पूछा नहीं पर पता चल गया,
ज़िन्दगी नेह में गुनगुनाने लगी॥

धूप चढ़ते हुए धूप ढलती रही,
धूप मद्धिम कभी तेज चढ़ने लगी।
एक पल को हँसी एक पल ग़म मिला,
दर्द की दास्तां रोज़ गढ़ने लगी।
रूठने जब लगे हम हुए अनमने,
वो हमें भाँपकर फिर मनाने लगी।
उसने पूछा नहीं पर पता चल गया,
ज़िन्दगी नेह में गुनगुनाने लगी॥

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जब पता चल गया आजमाती है ये,
हो के बैख़ौफ़ हम रोज़ जीने लगे।
उसकी आँखों में भी था नशा जोर का,
हो के आगोश में रोज़ पीने लगे।
हद कहाँँ तक मेरी करने मालूम ये,
वो घड़़ी दर घड़ी आजमाने लगी।
उसने पूछा नहीं पर पता चल गया,
ज़िन्दग़ी नेह में गुनगुनाने लगी॥

परिचय–प्रदीपमणि तिवारी का लेखन में उपनाम `ध्रुव भोपाली` हैl आपका कर्मस्थल और निवास भोपाल (मध्यप्रदेश)हैl आजीविका के लिए आप भोपाल स्थित मंत्रालय में सहायक के रुप में कार्यरत हैंl लेखन में सब रस के कवि-शायर-लेखक होकर हास्य व व्यंग्य पर कलम अधिक चलाते हैंl इनकी ४ पुस्तक प्रकाशित हो चुकी हैंl गत वर्षों में आपने अनेक अंतर्राज्यीय साहित्यिक यात्राएँ की हैं। म.प्र.व अन्य राज्य की संस्थाओं द्वारा आपको अनेक मानद सम्मान दिए जा चुके हैं। बाल साहित्यकार एवं साहित्य के क्षेत्र में चर्चित तथा आकाशवाणी व दूरदर्शन केन्द्र भोपाल से अनुबंधित कलाकार श्री तिवारी गत १२ वर्ष से एक साहित्यिक संस्था का संचालन कर रहे हैं। आप पत्र-पत्रिका के संपादन में रत होकर प्रखर मंच संचालक भी हैं।

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