कुल पृष्ठ दर्शन : 169

जीवन जीने की कला है `आध्यात्म `

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

*********************************************************************

एक अंध विद्यालय में एक दिन शिक्षक ने ‘हाथी पृथ्वी पर सबसे विशाल जानवर है’ यह बताया। यह सुनकर उन अंधे विद्यार्थियों ने अपने शिक्षक से हाथी को जानने की जिज्ञासा प्रकट की।
संयोगवश एक महावत अपने हाथी के साथ उसी समय विद्यालय के सामने से जा रहा था। शिक्षक के अनुरोध पर महावत ने हाथी को विद्यालय के प्राँगण में लाकर खड़ा कर दिया।
शिक्षक ने उन अंधे विद्यार्थियों को आगे बढ़कर हाथी को स्पर्श कर जानने,समझने के लिए कहा। विद्यार्थी हाथी को महसूस कर बड़े प्रसन्न हुए। महावत हाथी को लेकर चला गया। सब विद्यार्थी कक्षा में बैठ गए।
शिक्षक ने विद्यार्थियों से प्रश्न किया कि तुम सबने हाथी को स्पर्श कर महसूस किया कि हाथी कैसा होता है,एक-एक कर बताओ ?
एक विद्यार्थी जिसने हाथी का पेट स्पर्श किया था,झट से बोल पड़ा-हाथी दीवाल जैसा होता है।
दूसरे ने हाथी की पूँछ पकड़ी थी, उसने कहा-हाथी रस्सी जैसा होता है।
तीसरे के हाथ ने हाथी के पैरों को स्पर्श किया था,उसने झट से कहा,-नहीं ! हाथी तो खंभे जैसा होता है।
चौथे के हाथ में हाथी का बड़ा कान पकड़ में आया था। उसने कहा-हाथी सूप जैसा होता है।
शिक्षक ने कहा,-तुम सब अपने अनुभवों को एक साथ मिला दो,तो हाथी वैसा ही होता है।
ईश्वर उस हाथी के समान है। संसार में अधिकांश मनुष्य उन अंधे विद्यार्थियों के समान हैं जो अपने-अपने ढंग से ईश्वर का अनुभव कर संतुष्ट और प्रसन्न हैं। संसार में ईश्वर की उपासना,जानने,समझने के अनेक रूप हैं जैसे-
नमन,वंदन,दर्शन,पूजा,पाठ,अर्घ्य,अभिषेक,पवित्र नदियों में,शुभ मुहूर्त में स्नान,तीर्थों में भ्रमण,जप,ध्यान,यज्ञ आदि।
सामान्य जीवन में हम देखते हैं कि कुछ लोग जहाँ देवी-देवताओं के मंदिरों के सामने से गुजरते हैं तो,प्रणाम कर लेते है,या मंदिर की आरती में शामिल हो लेते हैं,उनका धर्म पालन हो गया। कुछ लोग दैनिक,साप्ताहिक या किसी विशेष अवसर पर मंदिर जाकर दर्शन कर लेते हैं,थोड़ा प्रसाद चढ़ा देते हैं,उनका भी धर्म पालन हो गया। कुछ लोग नहा-धोकर घर में पूजा वेदी पर या विभिन्न मंदिरों में जाकर प्रसाद,फूल,अक्षत चढ़ाकर धूप, दीप,अगरबत्ती जलाकर पूजा कर लेते हैं। कुछ लोग हनुमान चालीसा,दुर्गा चालीसा,गीता,रामायण या अन्य किसी स्त्रोत का पाठ कर लेते हैं,उनका भी धर्म पालन हो जाता है। कुछ लोग नहाकर एक लोटा जल सूर्य भगवान को,या शिवलिंग पर चढ़ा कर ही धर्म पालन कर लेते हैं। कुछ लोग कभी-कभी भगवान शिव का रुद्राभिषेक कर ही अपने धर्म पालन से संतुष्ट हो जाते हैं।
कुछ लोग शुभ दिनों में गंगा,यमुना,नर्मदा, नारायणी,सरयू आदि नदियों में डुबकी लगा कर ही जीवन धन्य मान लेते हैं। कुछ लोग वैष्णो देवी,बद्रीनाथ,केदारनाथ,विंध्याचल,
काशी विश्वनाथ,बाबा वैद्यनाथ धाम आदि तीर्थों में भ्रमण कर दर्शन कर स्वयं को धन्य मानते हैं। ऐसे ही कुछ लोग विभिन्न मंत्रों के जप को ही महत्व देते हैं। और तो कुछ लोग केवल ध्यान को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं,तो कुछ लोग होम करने,यज्ञ करने को ही धर्म- कर्तव्य मानते हैं।
इन सभी धार्मिक क्रियाओं की तुलना यदि अंध विद्यालय के विद्यार्थियों के हाथी को स्पर्श करने से करें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
जिस प्रकार व्यायामशाला में किसी एक या दो अंगों का नियमित व्यायाम करने से शरीर सुडौल नहीं बनेगा,ठीक उसी प्रकार धर्म पालन के एक-दो अंगों के पालन को ही सब-कुछ मानने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कैसे हो सकता है ?
व्यक्तित्व के संतुलित विकास के बिना, पात्रता संवर्धन किये बिना,ईश्वर की कृपा आशीर्वाद के अधिकारी भला हम कैसे हो सकते हैं ? समग्र अध्यात्म ही जीवन जीने की कला है,आर्ट ऑफ लिविंग है। ईश्वर की कृपा,आशीर्वाद,और ईश्वर प्राप्ति
का यही सर्वोत्तम उपाय है। श्री सत्य सनातन धर्म इसी की शिक्षा देता है। श्री सत्य सनातन धर्म के अनुयायी,समग्र अध्यात्म के सूत्रों का पालन कर,जीवन के सर्वांगीण विकास की साधना कर,ईश्वरीय कृपा,आशीर्वाद को प्राप्त कर,दैवी संरक्षण में सुख-शांति,समृद्धि को प्राप्त कर सकते हैं।
मन,वचन,कर्म में एकरूपता का अभाव और गुण,कर्म स्वभाव में उत्कृष्टता की कमी से आध्यात्म का वांछित लाभ नहीं मिल पाता,इसलिए आवश्यक है कि हम चिन्ह पूजा की जगह वास्तविक आध्यात्म को अपनाएं और मानव जीवन को सार्थक करें।

परिचय-रायपुर में  बैंक में वरिष्ठ प्रबंधक के पद पर कार्यरत अमल श्रीवास्तव का वास्तविक नाम शिवशरण श्रीवास्तव हैl`अमल` इनका उपनाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैl अमल जी का जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैl आपने गणित विषय से बी.एस-सी.की करके बैंक में नौकरी शुरू कीl आपने तीन विषय(हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. भी किया हैl आपने रामायण विशारद की भी प्राप्त की है,तो पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैl भारतीय संगीत में आपकी रूचि है,इसलिए संगीत में कनिष्ठ डिप्लोमा तथा ज्योतिष में भी डिप्लोमा प्राप्त किया हैl वर्तमान में एम्.बी.ए. व पी-एचडी. जारी हैl शतरंज के उत्कृष्ट खिलाड़ी,वक्ता और कवि श्री श्रीवास्तव कवि सम्मलेनों-गोष्ठियो में भाग लेते रहते हैंl मंच संचालन में महारथी अमल जी लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैl देश के नामी पत्र-पत्रिका में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंl रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैl विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े होकर प्रांतीय पदाधिकारी भी हैंl गायत्री परिवार से भी जुड़े होकर कई प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैंl महत्वपूर्ण उपलब्धि आपके प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म. प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन सहित राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना हैl