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माँ, हम तुम्हें ही…

हेमा श्रीवास्तव ‘हेमाश्री’
प्रयाग(उत्तरप्रदेश)

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मातृ दिवस स्पर्धा विशेष…………


हम बड़े हो गए माँ,तुम्हें समझाने लगे हैं,
हम तुम्हें ही तुम्हारे फर्ज गिनाने लगे हैं।
तुम उँगली पकड़ के चलना हमें सिखाती थी,
हम तुम्हें ही छड़ी-बैसाखी थमाने लगे हैं।

हम बड़े हो गए माँ,तुम्हें समझाने लगे हैं,
हम तुम्हें ही तुम्हारे फर्ज गिनाने लगे हैं॥

तुम हमें भेजती थी विद्यालय शिक्षा पाने को,
हम तुम्हें आज उपदेश सुनाने लगे हैं।
तुम सुबह-शाम हमें साबुन तेल काजल लगाती थी,
हम तुम्हें मँहगाई की दरें बताने लगे हैं।

हम बड़े हो गए माँ,तुम्हें समझाने लगे हैं,
हम तुम्हें ही तुम्हारे फर्ज गिनाने लगे हैं॥

तुम रोज सवेरे सबसे पहले हमें खिलाती थी,
हम बचा हुआ खाना तुम्हें खिलाने लगे हैं।
तुम कच्छा,शर्ट-यूनिफार्म सब धोया करती थी,
हम तेरी ही साड़ी धोने से कतराने लगे हैं।

हम बड़े हो गए माँ,तुम्हें समझाने लगे हैं,
हम तुम्हें ही तुम्हारे फर्ज गिनाने लगे हैं॥

तुम बचा-बचाकर पैसे हमको मेला घुमाती थी,
हम बचा-बचाकर पैसे तुम्हें रुलाने लगे हैं।
कभी चोट लगी तो एक फूँक से कर देती ठीक,
हम तेरे ही जख्मों से नजरें बचाने लगे हैं।

हम बड़े हो गए माँ,तुम्हें समझाने लगे हैं,
हम तुम्हें ही तुम्हारे फर्ज गिनाने लगे हैं॥

तुमने मेरे लिए बड़ा-सा घर बनवाया था,
हम तुम्हें ही एक कमरे में बैठाने लगे हैं।
तुमने हमारे लिए मंदिर-मस्जिद तक दुआँ माँगी थी,
हम तेरे उस तप को झूठ-पाखंड बनाने लगे हैं।

हम बड़े हो गए माँ,तुम्हें समझाने लगे हैं,
हम तुम्हें ही तुम्हारे फर्ज गिनाने लगे हैं॥

तुम हमको लाड़-दुलार सदा ही देती थी,
हम तुम्हें बोझ की गठरी जताने लगे हैं।
जीवन के नाजुक हर मोड़ पर तुमने हमें संभाला,
हम तुम्हें ही आज दिशा-हीन बताने हैं।

हम बड़े हो गए माँ,तुम्हें समझाने लगे हैं,
हम तुम्हें ही तुम्हारे फर्ज गिनाने लगे हैं॥

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