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जीवन-संघर्ष

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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संघर्ष सं+घर्ष, संघर्ष संग+घर्ष,
साथ-साथ सटे-सटे ही चलना
‘घर्ष’ मतलब घर्षण जो कि घिसे,
साथ-साथ रगड़ खाए या पिसे।

दुनिया में हर जगह पे घर्षण है,
जहां घर्षण नहीं, वहां समर्पण है
समर्पण यानी खत्म, मर जाना,
अपने अस्तित्व को ही मिटा देना।

मनुष्य को दुनिया में आने के लिए,
करना पड़ता है समय से संघर्ष
बीज को उगने के लिए करना पड़ता,
धरती के साथ जबरदस्त संघर्ष।

इसलिए, सब कहते ‘जीवन संघर्ष है’,
भोजन के लिए भी अन्न और दांत में
जबरदस्त अघोषित संघर्ष होता है,
संघर्ष नहीं तो ये जीवन ही नहीं।

संघर्ष ही सारी ऊर्जा का स्त्रोत है,
यहां तक कि शब्द भी संघर्ष से
जब होंठों का संघर्ष होता तब ही,
साथ जीभ व तालू का संघर्ष भी है।

संघर्ष से तो हमारा गहरा रिश्ता है,
बिना संघर्ष एक कदम आगे मुश्किल
होता एक कदम पीछे भी मुश्किल,
सुबह से शाम तक संघर्ष ही संघर्ष।

कलम जब कागज के साथ करती है,
संघर्ष, तब ही वो कुछ लिख पाती है।
‘दीनेश’ अंगुलियाँ करती हैं जब संघर्ष,
मोबाईल से तब कविता लिखती हैं॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।