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झाँसी की मर्दानी लक्ष्मीबाई

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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काशी (वाराणसी) में जन्मी एक सुबाला,
‘मणिकर्णिका’ नाम बचपन का, प्यार से ‘मनु’ ही सभी ने पुकारा
पिता मोरोपंत ताम्बे-माँ भागीरथी बाई ने पुचकारा,
मनु बड़ी हो हुई छबीली, शास्त्र-शस्त्र शिक्षा का मिला सहारा।

बाल्य काल में सीख चुकी थीं निशानेबाजी, घुड़सवारी, तलवार गुर से अपने अड़कर,
मराठा परिवार की बेटी ने युद्धाभ्यास किया था डटकर
सन् १८५० ईस्वी में शादी, विदा हुई झाँसी,
महाराज गंगाधर राव संग लक्ष्मी बाई दुल्हन बनकर।

१८५१ ईस्वी में पुत्र रत्न हुआ, नाम दिया ‘दामोदर’,
बड़ी दुखद थी घटना वो जब चार माह में मृत्यु शैया पर पड़े दामोदर
गोद ले लिया राजा गंगाधर के भाई का पुत्र,
दुलारतीं अपने पुत्र से बढ़कर।

तभी अंग्रेज गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी पहुंचा अपना दल-बल लेकर,
प्रस्ताव भेजा ६० हजार वार्षिक पेंशन ले लो, जाओ झाँसी किला छोड़कर,
सारे राजा नतमस्तक हो गए अंग्रेजों से डरकर,
कहने को बड़े मर्द थे, लेकिन बिन लड़े ही भागे छिपकर।

झाँसी की मर्दानी खड़ी हुई,
तब अपनी ताकत पर डटकर
नाकों तले चने चबवाए,
अंग्रेजों के शिविर में घुसकर।

१० मई १८५७ को मेरठ में झाँसी की मर्दानी ललकारी,
अंग्रेजों ने महल लूटा, ‘रानी आत्म समर्पण कर दो’ बम से उड़ाने की धमकी दे डाली
रानी लक्ष्मीबाई बाई बन चुकी थीं तब ‘झाँसी की मर्दानी’,
‘आत्म समर्पण नहीं करूँगी, नहीं झुकूँगी, मरते दम तक युद्ध करूँगी’ आज़ादी की जिद कर डाली।

सूरज उदय हुआ, मातृ शक्ति के साथ खड़ा था पूरा झाँसी, नेतृत्व करती ‘झाँसी की मर्दानी’
खूब लड़ी मर्दानी, झाँसी की एक रानी होकर,
बड़े-बड़े राजा आदेश पाल हो गए, अंग्रेजों के सामने झुककर,
तब झाँसी की मर्दानी खड़ी हुईं थी पहली महिला विद्रोही बनकर।

इनकी ताकत पर एकजुट होते गए राजा और रियासत मिलकर,
फिर भी कुछ राजा ने गद्दारी कर दी, उनका मनोबल तोड़कर
१८५७ की क्रांति का ज्वार चढ़ने लगा जन-जन में बढ़कर,
झाँसी की रानी के तीन घोड़े प्यारे ‘सारंगी-‘पवन’-‘बादल’ तीनों एक से बढ़ कर,
लक्ष्मीबाई बाई जब सवार हों युद्ध कौशल में चढ़कर।

झाँसी की रानी ने सोचा न था लोग हमसे करेंगें मक्कारी,
ग्वालियर राजघराने ने कर दी बड़ी गद्दारी
वहीं ब्रिटिश की सेना हो गई झाँसी की रानी पर भारी,
रानी को हर ओर से अंग्रेजों ने घेरा, उनके सैनिक पर जमकर की बमबारी
५ हजार सैनिक शहीद हुए, खून से धरती लाल हुई थी सारी।

१८५७ की उस जंग में कहाँ छिपे थे बड़े वीर-शूरवीर,
मर्दानगी पर शक होता है, कहाँ भागे थे युद्ध वीर-रणवीर
झाँसी की रानी ने अपना दुर्गा रूप दिखाया, कृपाण-कटार-तलवार की मार से कितनों को दिया चीर,
अंग्रेज देख भौचक्के सारे जंग में कौन है ऐसा वीर।

भारत माँ की बेटी लक्ष्मीबाई बनी माँ भवानी का तीर,
वीर शिवाजी आदर्श थे उनके, मार-काट कर घाव करें वो बेहद ही गंभीर,
झाँसी की मर्दानी थी वो, झाँसी की ही रानी लक्ष्मीबाई, मणिकर्णिका, मनु, छबीली बुँदेलों की गौरवगाथा में वही थीं शक्तिवीर।
हम सब लेते ‘परमवीर चक्र’, झाँसी की रानी को देना होगा ‘दुर्गा चक्र’, ‘सुदर्शन चक्र’
जो थीं आजादी के वीरों से वीर॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”