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टीस

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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रिश्ते अब रिश्ते नहीं,रिसते हो गये,रिस-रिस कर देते हैं टीस,
सदस्य घर में दो हों या पांच,नहीं बची अब रिश्तों में पहले जैसी आँचl

दूरियाँ बदल गईं मीलों दूर में,चाहे रहते हों कितने ही एक-दूसरे के पास,
भाई से भाई अलग हुए,जुदा हुए,बहनें भी रहतीं देखो कितनी उदासll

पति-पत्नी का पावन रिश्ता,मन से मन का रिश्ता,नहीं रहा अब कोई
व्यवहार,
एक-दो बरस बीते नहीं,हो गई अनबन छोटी-सी बात पर,तलाक बना व्यापार।

रिश्तों में आ गया खालीपन इतना ज्यादा,घर में ही भोग रहे वनवास,
अपनों का अपनापन ही गायब हो गया,खत्म हो गई एकदम सारी मिठास।

माँ थी स्नेह,प्यार दुलार की मूर्ति और पिता हर समय बने रहते थे ढाल,
सम्बन्धों में नहीं रहा अब कोई सम्बन्ध,हर सम्बन्ध हो गया बेहाल।

स्वार्थ से स्वार्थ टकराता,मतलब निकलता,नहीं रहा कोई रिश्तों का आधार,
जिससे जितना हो सकता फायदा,कर लो उससे ज्यादा,उतना ही और प्यारll

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक,धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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