सिद्धेश्वर
पटना (बिहार)
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सिद्धेश्वर की डायरी….
पटना (बिहार)। बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं डॉ. किशोर सिन्हा, जो अवकाश-प्राप्ति के पश्चात भी कविता, कहानी और आत्मकथा लिखने में अपनी पूरी शक्ति झोंक दिए हैं। उसी का परिणाम है आत्मकथा ‘तीस साल लंबी सड़क’, जिसे पढ़ते हुए कहानी-उपन्यास के मिश्रित रूप का एहसास होता है।
लंबे समय से उनकी बीमार पत्नी के आकस्मिक निधन ने उनके भीतर की सृजनात्मक शक्ति को भले बहुत आहत किया हो, किंतु उनके भीतर की संवेदनाओं को वह मार ना सका है। उनकी इस आत्मकथा को पढ़ते हुए इस बात का जीवंत एहसास हो जाता है कि जीवन की भाग-दौड़ में हम लंबी-लंबी कल्पना कर लेते हैं, ढेर सारी पुस्तकें लिखने, मान-सम्मान बटोरने के प्रति बेचैन भी रहते हैं;किंतु जब एहसास होता है कि मृत्यु हमारे जीवन की अंतिम सच्चाई है (जैसे उनकी धर्मपत्नी का स्वर्गवास!) और तब वह यह कहने में जरा भी संकोच नहीं करता-‘‘पहले मैंने सोचा था कि मैं इस पुस्तक का तीसरा खंड भी लिखूंगा, लेकिन आज जब इंसान को जीवन की नश्वरता क्षण भंगुरता का एहसास बहुत शिद्दत से होने लगा है, जहां अगले पल का ही कुछ भरोसा नहीं, वहां मैं तीसरे खंड और उसके कथा-प्रारूप के बारे में सोचने की हिमाकत कैसे कर सकता हूँ ?’’ किंतु वे अब भी लगातार लिख रहे हैं। हाँ, यही तो एक लेखक की तीव्रता होती है।
इस वृहत् पुस्तक में उन्होंने अपने जीवन के बहुमूल्य ३० साल की लंबी सड़क को समेटने का सार्थक प्रयास किया है, जो बिल्कुल उनके निजी अनुभव और विभिन्न आयामों को बखूबी बयां कर रही है। इस पुस्तक में
वे छात्र-जीवन से लेकर आंदोलन के दौरान युवावस्था में जेल जाने से लेकर, अपने अंतरंग मित्रों की अंतरंगता को रेखांकित करने में सफल दिख पड़ते हैं।
बहुधा ऐसी बातों को पढ़ने में लोग रुचि नहीं रखते, और बोझिलता का अनुभव करते हैं, किंतु इस पुस्तक की भाषा इतनी सरल और आत्मीयतापूर्ण है कि पढ़ने की जिज्ञासा स्वतः जाग उठती है। अपने जीवन के प्यार-भरे सुनहरे पलों से लेकर ऑपरेशन थिएटर में दौड़ते अपनी पत्नी का इलाज कराते हुए लेखक के भीतर की जद्दोजहद हृदय को निश्चित तौर पर झकझोर जाती है और हमारी संवेदनाओं को जीवंतता प्रदान करती है, जैसा कहानी या उपन्यास पढ़ते हुए एक पाठक महसूस करता है। कोई बनावटीपन नहीं, कोई कलाबाजी नहीं;बनावटीपन से दूर डॉ. सिन्हा की रचनाएं, उनकी सृजनात्मक जीवंतता को रेखांकित करती हैं।
बतला दूं कि, प्राप्त पुस्तक पर लिखी गई मेरी यह डायरी है, पुस्तक समीक्षा नहीं।
वैसे, लेखन का पहला उद्देश्य लेखक की आत्मिक संतुष्टि होती है, जिस उद्देश्य में डॉ. सिन्हा सफल दिख पड़ते हैं। यह बात उन्होंने हम सब लोगों के बीच की कही है, इसलिए बहुत ही प्रेमपूर्वक पढ़ी भी जाएगी, इसमें कोई दो मत नहीं है। खास समुदाय द्वारा ही इस पुस्तक (‘तीस साल लंबी सड़क’) का स्वागत् अवश्य होगा, इसमें भी कोई गुंजाइश नहीं रह जाती।