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तुम इस जहां की नहीं

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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तुम इस जहां की नहीं हो
जो तुमसे मैं मिल पाऊंगा,
तुम नूर उस खुदा का हो
कैसे जन्नत को मैं पाऊंगा।

आँखें तुम्हारी सागर-सी है
जुल्फें काली बादल-सी है,
सूरत तुम्हारी चाँद सरीखी
ज़मीं से कैसे मैं छू पाऊंगा।

सागर में डूबूं तो प्यासा
मीठे पानी को मर जाऊंगा,
घुमूं काली बदरा में जो
मैं जीते-जी बह जाऊंगा।

चाँद को छूना नामुमकिन
राह-अंधेरे में खो जाऊंगा,
पंख चाहिए उड़ने को फिर भी
क्या इतना मैं उड़ पाऊंगा!

तुम ही बताओ अब प्रिय
मैं जन्नत कैसे पाऊंगा,
ख्वाब तलक तो ठीक ही है
पर साथ हकीकत में न दे पाऊंगा।

तुम इस जहां की नहीं हो,
जो तुमसे मैं मिल पाऊंगा…।
तुम नूर उस खुदा का हो,
कैसे जन्नत को मैं पाऊंगा…॥

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