कुल पृष्ठ दर्शन : 360

You are currently viewing तुम ही सारथी हो

तुम ही सारथी हो

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
*********************************************************************
अनजानी-सी रात है,पलभर की मुलाकात है,
छोटी-सी दुनिया में,बड़ी-बड़ी बात है।

आँखों में सपने हैं,पास नहीं अपने हैं,
चलना है देखो अपनी राह पर,तेरा कर्म तेरे साथ है।

बाकी सब स्वार्थ है,नश्वर है दुनिया,
जीना-मरना इक बार है,मोह-माया सब निराधार है।

नईया तेरी जिस ओर है,देख विपरीत पवन का शोर है,
सुलगती हुई-सी ये जिंदगी,प्रज्वलित मौत ये स्वर्ग है।

हाथों में हाथ लो,खुद के तुम साथी हो,
दुनिया तुम्हारी नहीं,तुम दुनिया के सारथी हो।

डर किस बात का,जब मौत तेरी प्रार्थी हो,
हँस के बड़ा क़दम,मंजिल को तेरा इंतज़ार हो।

बढ़ते चल,चला चल तू,आत्मशक्ति तुझे ले जा रही है,
दुनिया का मुँह है,मुँह तो खोलेगी,हाँ खंजर-सा बोलेगी।

मन बड़ा चंचल है,मौसम पे मंडराता है,
ये तेरी बुद्धि ही तुझे योध्दा बनाती है॥

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। 
लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

Leave a Reply