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दिलों की प्रेरक भावनाओं का पर्व ‘होली’

ललित गर्ग

दिल्ली
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होली विशेष…

होली एक ऐसा त्योहार है, जिसका धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक-आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। बदलती युग-सोच एवं जीवन-शैली से होली त्यौहार के रंग भले ही फीके पड़े हैं या स्वार्थ एवं संकीर्णता से होली की परम्परा में धुंधलका आया है। परिस्थितियों के थपेड़ों ने होली की खुशी को प्रभावित भी किया है, फिर भी जिन्दगी जब मस्ती एवं खुशी को स्वयं में समेटकर प्रस्तुति का बहाना मांगती है, तब प्रकृति एवं परम्परा हमें होली जैसा रंगारंग त्योहार देती है। इस त्योहार की गौरवमय परम्परा को अक्षुण्ण रखते हुए हम एक उन्नत आत्मउन्नयन एवं सौहार्द का माहौल बनाएं, जहां संस्कृति एवं जीवन के रंग खिलखिलाते हुए देश ही नहीं दुनिया में अहिंसा, प्रेम, भाई-चारे, साम्प्रदायिक सौहार्द के रंग बिखेरे।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, होली फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह वसंत ऋतु के आगमन का जश्न है। इस वर्ष होली पर अनेक शुभ योग बनने से होली का महत्व अधिक है। इस बार समस्त बड़े-छोटे योग ३४० वर्ष बाद प्राप्त हो रहे हैं, जो विशेष फलदायी, शुभ एवं नवीन उत्सवमयी होने का सूचक हैं। पौराणिक मान्यताओं की रोशनी में होली के त्योहार का विराट समायोजन बदलते परिवेश में विविधताओं का संगम बन गया है, दुनिया को जोड़ने का माध्यम बन गया है। हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि, यहाँ मनाए जाने वाले सभी त्यौहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं। वस्तुतः होली आनंदोल्लास का पर्व है।
होली की परम्पराएँ श्रीकृष्ण की लीलाओं से सम्बद्ध हैं और भक्त हृदय में विशेष महत्व रखती हैं। श्रीकृष्ण की भक्ति में सराबोर होकर होली का रंगभरा और रंगीनीभरा त्यौहार मनाना एक विलक्षण अनुभव है। होली जैसे त्यौहार में जब अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, ब्राह्मण-शूद्र आदि सब का भेद मिट जाता है, तब ऐसी भावना करनी चाहिए कि होली की अग्नि में हमारी समस्त पीड़ाएँ दुःख, चिंताएँ, द्वेष-भाव आदि जल जाएँ व जीवन में प्रसन्नता, हर्षोल्लास तथा आनंद का रंग बिखर जाए। होली का यह संकल्प हो सकता है कि, हम स्वयं शांतिपूर्ण एवं स्वस्थ जीवन जीएं और सभी के लिए शांतिपूर्ण एवं निरोगी जीवन की कामना करें। ऐसा संकल्प लेकर ऐसा जीवन सचमुच होली को सार्थक बना सकता है। होली शब्द का अंग्रेजी भाषा में अर्थ होता है पवित्रता। इस त्योहार के साथ यदि पवित्रता की विरासत का जुड़ाव होता है तो इसकी महत्ता शतगुणित हो जाती है। प्रश्न है कि, प्रसन्नता का यह आलम जो होली के दिनों में जुनून बन जाता है, कितना स्थायी है ? डफली की धुन एवं डांडिया रास की झंकार में मदमस्त मानसिकता ने होली जैसे त्योहार की उपादेयता को मात्र इसी दायरे तक सीमित कर दिया, जिसे तात्कालिक खुशी कह सकते हैं, जबकि अपेक्षा है कि रंगों की इस परम्परा को दीर्घजीविता प्रदान करते हुए आत्मिक खुशी का जरिया भी बनाएँ।
जीवन को हर रंग में जीने और स्वीकारने की कला सबको नहीं आती। उसके लिए जरूरत होती है, एक मस्तमौला नजरिए की। समुद्र से मिलने को तत्पर, मीलों बहती रहने वाली नदी की ऊर्जा की। ऊर्जा और आनंद के इसी मेल का प्रतीक है होली का त्यौहार, जो लगातार बदलते रहने के बावजूद बना रहता है, सत्य है। जितने रंग प्रकृति के हैं, उतने ही हमारे हैं और प्रकृति हर पल रंग बदलती है। पुरानी पत्तियाँ शाख छोड़ती नहीं हैं कि, नई खिलनी शुरू हो जाती हैं। पतझड़ और बसंत साथ ही चलते रहते हैं। उगने, डूबने, खिलने, फैलने, मिलने, सूखने, झड़ने, चढ़ने, उतरने और खत्म होने का हर रंग प्रकृति में और है होली के मनभावन पर्व में, पर प्रकृति हो या होली इनसे उदासीन हम कुछ ही रंगों में सिमट जाते हैं। गिले-शिकवों, उदासी, तेरे-मेरे, क्रोध और कुंठा में ही अटक जाते हैं। नतीजा, जिंदगी में तनाव और उदासी घिरने लगती है। होली जैसे त्यौहारों के बावजूद जीवन के सारे रंग फीके पड़ रहे हैं। न कहीं आपसी विश्वास रहा, न किसी का परस्पर प्यार, न सहयोग की उदात्त भावना, न संघर्ष में एकता का स्वर उठा। बिखराव की भीड़ में यूँ लगता है सब कुछ खोकर विभक्त मन अकेला खड़ा है, फिर से सब कुछ पाने की आशा में।
हम भी भविष्य की अनगिनत संभावनाओं को साथ लिए आओ फिर से एक सचेतन माहौल बनाएँ। उसमें सच्चाई का रंग भरने का प्राणवान संकल्प करें। होली के लिए माहौल भी चाहिए और मन भी चाहिए। ऐसा मन, जहाँ हम सब एक हों और मन की गंदी परतों को उखाड़ फेंकें, ताकि अविभक्त मन के आइने में प्रतिबिम्बित सभी चेहरे हमें अपने लगें। कलाकार एमी ग्रेंट के अनुसार, ‘काला रंग गहराई देता है। इसे मिलाए बिना किसी वास्तविकता को रचा नहीं जा सकता।’ जीवन में सुख-दुख दोनों हैं। दोनों एक-दूसरे में बदलते रहते हैं। सारी कोशिशें ही दुखों से बचने की होती हैं। होली का अवसर भी सारे दुःखों को भूलकर स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का अवसर है।
होली दिलों से जुड़ी भावनाओं का पर्व है। यह मन और मस्तिष्क को परिष्कृत करता है।
महान् दार्शनिक संत आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान के माध्यम से विभिन्न रंगों की साधना कराते हुए आत्मा को उजालने एवं भीतरी दुनिया को उन्नत बनाने की विधि प्रदत्त की है। जैन दर्शन भी कहता है कि, जैसे विचार होते हैं, वैसे ही कर्म परमाणु आत्मा से चिपक जाते हैं। आत्मा के तमाम रंगों तक पहुंचने की हमारी यात्रा मन से होकर गुजरती है। हमें अपने विचारों को सही रखना होता है। उसमें दूसरों के लिए जगह छोड़नी होती है। नकारात्मक ऊर्जा के नुकसान से बचने के लिए होली के रंगों में सराबोर होना, रंगों का ध्यान करना, अपनी पर्वमय संस्कृति से रू-ब-रू होना फायदेमंद साबित होता है।