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होलाष्टक में शुभ कार्य करना अशुभ

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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होली विशेष….

फाल्गुन मास में हिन्दुओं का ९ दिन तक मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्यौहार होली आता है, जो सनातनी संस्कृति में कुछ महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। होली के पहले के ८ दिनों को ‘होलाष्टक’ कहा जाता है, अर्थात फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा यानी होलिका दहन तक के समय को होलाष्टक मानते हैं। चूँकि, होलाष्टक वाले समय को बहुत अशुभ माना जाता है, इसी कारण से इस समयावधि में शास्त्रों के अनुसार सब तरह के शुभ काम वर्जित हैं। अर्थात होलाष्टक के दौरान शादी, नामकरण, गृह-प्रवेश, मुंडन, संस्कार इत्यादि जैसे कई तरह के अनुष्ठानों पर रोक लग जाती है। और तो और होलाष्टक अवधि के दौरान सकाम (किसी कामना से किए जाने वाले यज्ञादि) के लिए किए जाने वाले, किसी भी प्रकार के हवन, यज्ञ कर्म भी नहीं किए जाते। इसके अलावा हर तरह के निवेश या व्यापार भी शुरू नहीं करने की सलाह दी जाती है। दूसरे शब्दों में यह ८ दिन हमें सब तरह से पूर्ण रुप से शुद्ध होने के लिए प्रेरित करता है, अर्थात हम न केवल अपने बुरे विचार, कर्म वगैरह के साथ-साथ अशुद्धता व दोषों को भी घर से बाहर कर दें।
होलाष्टक को अशुभ मानने के पीछे पौराणिक काल में घटित एक कथानुसार माना जाता है कि, फाल्‍गुन मास की अष्‍टमी को ही शिवजी ने कामदेव को उनकी तपस्या को भंग कर देने के कारण क्रोधित हो भस्‍म कर दिया था। जब कामदेव की पत्नी ‘रति’ को इसका पता चला, तब वह भोले शम्भू की शरण में पहुँच ८ दिन तक लगातार आराधना कर शिवजी से वरदान प्राप्त करने में सफल हो गई।
उपरोक्त कारण से माना जाता है कि, इस वक्‍त वातावरण में बहुत नकारात्मकता रहती है। इसलिए कोई भी शुभ कार्य नहीं करने में ही भलाई मानी जाती है।
यह त्यौहार इतना लोकप्रिय हो गया है, जिसके चलते न केवल हिन्दू, बल्कि अन्य मतावलम्बी भी इसकी उम्मीद रखते हैं और गली-गली में आपस में बड़े पैमाने पर धूमधाम से मनाते हैं।
इस पर्व में सम्मिलित होने के लिए बहुत लोग अपने कार्य स्थल से पैतृक स्थल पर पहुंचने की पूरी चेष्टा रखते हैं, अन्यथा जो जहां रह रहा है वह होलाष्टक के दौरान किसी भी प्रकार का शुभ कार्य न करते हुए सनातनी संस्कृति अनुरूप इस पर्व को मनाकर आनन्द लेते हैं।