हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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रचनाशिल्प:काफिया- भिगा, गिरा, सता, बना, निभा, दिखा इत्यादि; रदीफ़-रहे, २२१ २१२१ २२२१ २१२
बरसात, बनके मिल गए, दिल को भिगा रहे।
उनके खयाल, आँख से बूंदें गिरा रहे।
घड़ियाँ नसीब से बनीं, पलभर का चैन था,
चैनो-करार मिट गया, दिल को सता रहे।
इक आग है लगी हुई, तड़पा करे है दिल,
आएं, कभी तो चैन भी दिल का बना रहे।
दुनिया में प्यार है मगर, हमको नहीं मिला,
हमको मिलीं हैं गर्दिशें, उनको निभा रहे।
देखा ‘चहल’ ने चाॅंद को, चाहत उन्हीं की थी,
कैसे, कहे कि ख्वाब वो हमको दिखा रहे॥
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।