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दीया माटी का

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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अबकी इस दिवाली पर माटी का दीया जलाओ,
छोड़ चीन की विद्युत लड़ियाँ स्वदेशी अपनाओ।

अपनी संस्कृति संस्कार हो अपना हो परिवेश,
हम हैं पूरब के वासी जगती में सदा विशेष।

तम हरने को एक दीप माटी का जब जलता है,
सारे जग को रोशन कर के अंधियारा हरता है।

तूफानों लड़ कर के भी कभी नहीं वो हारा,
खुद जल कर करता रहता है सारा जग उजियारा।

छोड़ के अपना वेष देश का क्यों पश्चिम में जायें,
अपना ही परिधान पहन कर भारतीय कहलायें।

कुंभकार सुध खो तन की माटी के दीए बनाते,
रह कर के संलग्न कर्म में हैं परिवार चलाते।

दीपमालिका में हम भी अब उनका हाथ बंटायें,
बनें सहारा उनका वो दीपक खरीद कर लायें।

पावन मिट्टी भारत की पावन अपना त्योहार,
माटी के दीयों से जगमग हो अपना घर-द्वार।

माटी का अपने जीवन से बड़ा ही गहरा नाता,
ये तन भी माटी का है इस माटी में मिल जाता।

पावन शुद्ध पवित्र दिया माटी का ही कहलाये,
ये माटी तो चंदन है आओ सब तिलक लगायें॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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