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दुर्भाग्य से हम विरासत को छोड़ रोमन लिपि के पीछे दौड़ रहे

संगोष्ठी…

रायपुर (छत्तीसगढ़)।

संस्कृत तथा वैदिक साहित्य की लिपि नागरी है। वास्तव में कम्प्यूट र की गणना ऋग्वेद से आई है। दुर्भाग्य से हम अपनी विरासत को छोड़कर अंग्रेजी की रोमन लिपि के पीछे दौड़ रहे हैं। नीदरलैंड में भोजपुरी सहित कुछ भारतीय भाषाएं प्रयोग में है। नागरी लिपि अत्यंत सरल, सशक्त, स्पष्ट व सुदृढ़ लिपि है।
यह विचार नागरी लिपि परिषद (नई दिल्ली) की छत्तीसगढ़ इकाई के तत्वावधान में ३ फरवरी को ‘नागरी लिपि: वैश्विक परिदृश्य’ विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में मुख्य अतिथि नीदरलैंड के नागरी हिंदी सेवी डॉ. रामा तक्षक (अध्यक्ष-सांझा संसार) ने व्यक्त किए।
परिषद के महामंत्री तथा संस्कृति मंत्रालय (भारत सरकार) की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. हरिसिंह पाल ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि, मूल लिपि ब्राह्मी से भारतीय भाषाएं उद्भुत है। ब्राह्मी से ही नागरी लिपि और भारतीय व दक्षिण पूर्व एशिया की लिपियों का उद्भव हुआ है। लोक संस्कृति के स्थाई संरक्षण के लिए हमें लोक साहित्य को लिपिबद्ध कर उसका प्रकाशन करना आवश्यक है। लिपि विहीन बोली-भाषाओं के लिए नागरी सबसे अधिक उपयुक्त सिद्ध हो सकती है। लिपिकरण के अभाव में आज विश्व में १५ दिन में १ भाषा समाप्त होती जा रही है। अतः विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी भाषाओं को लिपिबद्ध कर लिया जाए तो उसका अस्तित्व भविष्य के लिए सुरक्षित बना रहेगा।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (दिल्ली) की सहायक प्राध्यापक डॉ. हर्षिता ने कहा कि, भाषा के लिखित रूप के लिए लिपि की आवश्यकता महसूस हुई। विश्वभर में नागरी के साथ रोमन, फारसी, रूसी जैसी अनेक लिपि प्रचलन में है। वैश्विक स्तर पर अनेक महानुभाव विदेश से भारत आकर हिंदी और नागरी लिपि को आत्मसात करने में रुचि ले रहे हैं। परिषद के कार्याध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख (पुणे, महाराष्ट्र) ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि, विश्व में लेखन के लिए अनेक लिपियों का आविष्कार हुआ है, परंतु जितना वैज्ञानिक और तार्किक चिंतन नागरी लिपि की योजना के पीछे है, उतना अन्यत्र दुर्लभ है। अपनी वैज्ञानिकता को नागरी ने अनेक संदर्भ में सिद्ध कर दिखाया है। अपनी संरचनात्मक उदारता, तार्किकता, वैज्ञानिकता, ध्वनियों की परिपूर्णता तथा लचीलेपन के कारण नागरी का वैश्विक परिदृश्य विस्तार पा चुका है। विश्व मंच पर नागरी प्रत्येक क्षेत्र में उड़ान भर रही है।
प्रारम्भ में प्राध्यापक डॉ. सुनील कुमार परीट ने प्रस्तावना में चारों ओर से लिखी जाने वाली नागरी लिपि को अत्यंत वैज्ञानिक लिपि बताया। डॉ.राजलक्ष्मी कृष्णन (परिषद् की तमिलनाडु प्रभारी) ने नागरी की महत्ता पर काव्य पाठ किया। गोष्ठी का शुभारंभ डॉ. संगीता पाल (कच्छ, गुजरात) की सुरीली आवाज में प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। स्वागत उद्बोधन प्राध्यापक नम्रता ध्रुव (रायपुर) ने दिया।
संगोष्ठी में राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी, डॉ. अदिति सैकिया, एस.अनंत कृष्णन, एम. सुब्रमण्यम, डॉ.सी.जे. प्रसन्नकुमारी, डॉ.पोपट कोटमे, नीतू बाला, डॉ. राहुल खटे और डॉ. पल्लवी पाटिल सहित अनेक प्रतिभागी पटल पर जुड़े रहे।
छग से नागरी की प्रचारक-प्रसारक डॉ.मुक्ता कान्हा कौशिक ने भी नागरी की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए संगोष्ठी का सफल संचालन किया। परिषद की छग इकाई के प्रभारी डॉ. आशीष नायक (धमतरी) ने आभार ज्ञापन किया।