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दूसरी माँ की दूसरी बेटी

रितिका सेंगर 
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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आज माँ का श्राद्ध है,इसलिए मीनू अपने मायके आई हुई है,और सुमन ,मीनू की भाभी,पण्डित जी को श्राद्ध सामग्री देते जा रही है। सामग्री लेते हुए पण्डित जी ने कहा,-“भोजन में सब माँ की पसंद की चीजें ही बनाई है नl” ।
रुंधे मन से मीनू बोली,-“पण्डित जी,माँ ने कभी खुद की पसंद का कुछ बनाया ही नहीं……वो…तो बस हमेशा हम बच्चों की पसंद का ही खाना बनाती थी। हमें उनकी पसंद पता ही…नहीं….।”
“नहीं-नहीं दीदी,सुमन बोली मुझे माँजी की पसंद पता है। मैंने भोजन में सब उन्हीं की पसंद की चीजें बनाई हैं।”
मीनू ने अचरजभरी निगाहों से सुमन की ओर देखा…,डबडबाती आँखों से सुमन ने कहा-“माँ जबसे इस घर में बहू बनकर आई थीं,उन्होंने अपनी पसंद भुलाकर परिवार के लोगों की पसंद का ध्यान रखाl वो आप बच्चों को बड़ा करने और घर संभालने में खुद को भुल गई,लेकिन जब वो मुझे इस घर की बहू बनाकर लाई,तब उनके पास फुर्सत के क्षण थे। वो कभी अपने बचपन के किस्से,कभी गृहस्थी के,मुझे बताती और मैं उनसे पुछकर उनकी पसन्द का खाना बनाकर उन्हें खिलाती…आखिर वो मेरी दूसरी माँ…थीं,और मैं उनकी दूसरी बेटी।”

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