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देखो होली आई

डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
मनेन्द्रगढ़ (छत्तीसगढ़)
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जीवन और रंग…

पतझड़ ने किया रुखसत,
बसंत बहार आई है
नई कोपलें धारण कर वृक्षों में बहार आई है,
देखो होली आई है।

सुबह की हल्की ठंडक,
दुपहरी में थोड़ी गर्मी
वृक्ष और पौधों में चमकते फूल-पत्तियाँ,
सुगंध होली की लाई है
देखो होली आई है।

बेटा-बेटी रिश्ते-नाते,
जो है अभी दूर
सफर की तैयारियाँ चल रही है,
मन घर आने को आतुर
स्नेह बंधन मधुर प्रेम,
अपनों पर उमड़ रही है
प्यार का स्पंदन लिए,
देखो होली आई है।

रंग-गुलाल मस्ती के संग,
लेकर आई नई उमंग
भेद न रखा किसी से,
सभी को लगाया रंग।
भूले-बिसरे गिले-शिकवे,
देखो होली आई है॥

परिचय- शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापक (अंग्रेजी) के रूप में कार्यरत डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती वर्तमान में छतीसगढ़ राज्य के मनेन्द्रगढ़ में निवासरत हैं। आपने प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर एवं माध्यमिक शिक्षा भोपाल से प्राप्त की है। भोपाल से ही स्नातक और रायपुर से स्नातकोत्तर करके गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (बिलासपुर) से पीएच-डी. की उपाधि पाई है। अंग्रेजी साहित्य में लिखने वाले भारतीय लेखकों पर डाॅ. चक्रवर्ती ने विशेष रूप से शोध पत्र लिखे व अध्ययन किया है। २०१५ से अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय (बिलासपुर) में अनुसंधान पर्यवेक्षक के रूप में कार्यरत हैं। ४ शोधकर्ता इनके मार्गदर्शन में कार्य कर रहे हैं। करीब ३४ वर्ष से शिक्षा कार्य से जुडी डॉ. चक्रवर्ती के शोध-पत्र (अनेक विषय) एवं लेख अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय पत्रिकाओं और पुस्तकों में प्रकाशित हुए हैं। आपकी रुचि का क्षेत्र-हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला में कविता लेखन, पाठ, लघु कहानी लेखन, मूल उद्धरण लिखना, कहानी सुनाना है। विविध कलाओं में पारंगत डॉ. चक्रवर्ती शैक्षणिक गतिविधियों के लिए कई संस्थाओं में सक्रिय सदस्य हैं तो सामाजिक गतिविधियों के लिए रोटरी इंटरनेशनल आदि में सक्रिय सदस्य हैं।

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