डॉ. अलका पाण्डेय
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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प्रियतम किधर गए,सखी मुझे बतलाओ…
प्रियतम किधर गए।
सूने मन में आग लगा कर,
नैनों से बिरहा बरसा कर
अधरों को मेरे तरसा कर,
साँसों को मेरी महका कर।
ख़ुद वन वन भटके,सखी मुझे बतलाओ…
प्रियतम किधर गए।
खेल खेल में जिया चुराया,
स्वयं हार कर मुझे जिताया
तरसें पल पल मेरी ख़ातिर,
मुझे प्रतीक्षा में तरसाया।
कोई तो समझाए,सखी मुझे बतलाओ…
प्रियतम किधर गए।
अपनाया ठुकराया तुमने,
तोड़ा और बनाया तुमने
माने और मनाया तुमने,
जागे मुझे जगाया तुमने।
पूछूं मैं कुछ बोलो,सखी मुझे बतलाओ…
प्रियतम किधर गए।
जीवन को त्योहार बना कर,
यादों का गलहार सजाकर
सपनों का संसार दिखाकर,
हृदय द्वार पर मुझे बिठाकर।
अब क्यों चुप्पी साधे,सखी मुझे बतलाओ,
प्रियतम किधर गए॥