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धरती की सन्तान

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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धरती की संतान सभी हैं,
मिलजुल हाथ बंटाना है।
नेक कर्म अपना ले प्राणी,
जग में नाम कमाना है॥

बढ़ता चल इस जीवन पथ पर,
रुकना नहीं निराशा में।
निश्छल बहती सरिता जैसी,
चलना लेकर आशा में॥
दीन-दुखी गर राह मिलेंगे,
संग उसे भी लाना है।
धरती की संतान…

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
सब में भाईचारा हो।
धरती की क्यारी लहराएँ,
उपवन अपना प्यारा हो
मानवता में जिएँ मरे हम,
मानव धर्म निभाना है॥
धरती की संतान…

कठिन राह या पर्वत घाटी,
देख नहीं रुकना हमको।
दुश्मन चाहे जले मरे अब,
कभी नहीं झुकना हमको॥
प्रगति मार्ग पर चलना सबको,
नित नव गीत सुनाना है।
धरती की सन्तान…॥

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