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धागा प्रेम का

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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स्नेह के धागे…

आज वह धागा प्रेम का ओ बहना, तुम जरूर पहनाना,
हर भाई को अपने बहन होने का एहसास जरूर कराना।

इस नफ़रत भरे मतलबी दौर में, रिश्तों की रसम निभाना,
महज रसम न रखना ओ पगली! राखी का भाव जगाना।

वासना के बाजारों से पुरुष को, प्रेम के घर को ले आना,
कामुकता की खीर ठुकरा बहना! प्रेम का लड्डू खिलाना।

अपने पति के सिवाए पगली, हर नर की बहन बन जाना,
वरना तो तृष्णा में डूब जाएगा, ओ शालीनें! यह जमाना।

बहन भाव का उपहार ही मांगना, और न कुछ ले जाना।
तू भी भाई को कुमकुम का नहीं, भ्रातृत्व तिलक कराना।

महज की रस्मों ने शुरू किया है, रिश्तों को पंगुन बनाना।
यह भाई-बहन का रिश्ता है पगली!कमजोर न इसे कराना।

नशे-दलदल से बाहर ला कर, तू भाभी को भाई लौटाना,
भगनी आलिंगन के जल से, भाई के दिल का मैल धुलाना॥