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मजदूर

प्रिया देवांगन ‘प्रियू’
पंडरिया (छत्तीसगढ़)
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मजदूरी का काम है,करते प्रतिदिन काम।
बहे पसीना माथ से,मिले नहीं आराम॥
मिले नहीं आराम,हाथ छाले पड़ जाते।
सर्दी हो या ठंड,सभी श्रम करके खाते॥
परिवारों को देख,रहे सबकी मजबूरी।
कैसे हो हालात,करे फिर भी मजदूरी॥

कहते हैं मजदूर को,जग के वो भगवान।
कर्म करें वो रात-दिन,बने नेक इंसान॥
बने नेक इंसान,सभी के महल बनाते।
करते श्रम हर रोज,तभी तो रोटी खाते॥
धूप रहे या छाँव,बोझ सबके हैं सहते।
सुख-दु:ख रहते साथ,नहीं वे कुछ भी कहते॥

छाले पड़ते हाथ में,काँटे चुभते पाँव।
सहते कितनी मुश्किलें,बैठे कभी न छाँव॥
बैठे कभी न छाँव, ठोकरे दर दर खाते।
रहती है मजबूर,नहीं दिखते हालाते॥
आँसू उनके देख,जुबाँ लग जाते ताले।
चलते नंगे पांँव,हाथ पड़ जाते छाले॥

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