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धार्मिक और स्वास्थ्य के लिए बहुउपयोगी है पलाश

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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‘पलाश’ के फूल को टेसू का फूल भी कहा जाता है। यह वसंत ऋतु में खिलता है और ३ रंगों का होता है-सफेद,पीला और लाल-नांरगी। आयुर्वेद में पलाश के पेड़ को बहुत ही अहम् स्थान है,क्योंकि बहुगुणी होने के कारण इसको कई तरह की बीमारियों के लिए औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता है।
आयुर्वेद में पलाश के जड़,बीज,तना,फूल और फल का इस्तेमाल बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता है। पलाश के बहुत सारे पोषक तत्व हैं,जो इसे अमूल्य बनाता है। वैदिक काल में पलाश का प्रमुख उपयोग यज्ञ कर्मों के लिए किया जाता था। कौशिकसूत्र में पलाश पेस्ट का प्रयोग जलोदर (पेट में सूजन) के लिए वर्णित है। बृहत्रयी में पलाश का प्रमुख रूप से प्रमेह या मधुमेह अपतानक अर्श (पाइल्स),अतिसार या दस्त,रक्तपित्त (कान-नाक से खून बहना),कुष्ठ आदि की चिकित्सा में प्रयोग मिलता है।

पलाश के पत्तों का प्रयोग दोना-पत्तल बनाने के लिए किया जाता है। ग्रीष्म ऋतु में इसकी त्वचा को क्षत करने पर रस निकलता है,जो लाल रंग का होता है तथा सूखने पर कृष्णाभ-रक्तवर्ण-युक्त तथा चमकदार होता है। पलाश का फूल प्यास कम करने वाला, कफ-पित्त कम करने वाला,उत्तेजना बढ़ाने वाला,मधुमेह नियंत्रित करने में मदद करता है। पलाश की गोंद अम्लीयता कम करने में और शक्ति बढ़ाने में मदद करता है। यह मुख रोग तथा खाँसी में भी फायदेमंद है। पत्ते सूजन तथा वेदना को कम करने वाले होते हैं। पलाश की जड़ का रस रतौंधी और नेत्र की सूजन को कम करता है,नेत्र ज्योति भी बढ़ाता है। ऐसे ही पलाश का तना काम शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है तो जड़ की छाल दर्द निवारक,अर्श तथा अल्सर में फायदेमंद होती है।
पलाश का वनस्पतिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा है। टेसू को संस्कृत में पलाश,किंशुक,पर्ण,रक्त पुष्पक,क्षारश्रेष्ठ,वाततोय,ब्रह्मवृक्ष कहते हैं तो हिंदी में ढाक,पलास,टेसू,पलाश;इंग्लिश में बास्टर्ड टीक आदि नाम से जाना जाता है।
इसकी छाल और गोंद में कैनोटांनिक तथा गैलिक अम्ल ५० फीसदी,पिच्छिल द्रव्य व क्षार २ फीसदी होता है। इन्हीं स्वास्थ्यवर्द्धक गुणों के आधार पर आयुर्वेद में इसका प्रयोग अनेक बीमारियों के लिए किया जाता है। जैसे मोतियाबिंद की समस्या में पलाश का प्रयोग करने पर कष्ट कम किया जा सकता है। ताजी जड़ों का अर्क निकालकर १-१ बूँद आँख में डालते रहने से मोतियाबिंद,रतौंधी इत्यादि सब प्रकार के आँख के रोगों से राहत मिलती है।
इसी तरह रातभर १०० मिली ठंडे पानी में भीगे हुए ५-७ पलाश फूल को छानकर सुबह थोड़ी मिश्री मिलाकर पीने से नकसीर बंद हो जाती है। यूँ ही जड़ को घिसकर कान के नीचे लेप करने से गलगंड में,जड़ का रस निकालकर अर्क की ४-५ बूँदें पान के पत्ते में रखकर खाने से भूख में और छाल और शुंठी का काढ़ा २ बार पिलाने से आध्मान (अफारा) तथा पेट दर्द में आराम मिलता है। इसी तरह पेट में कीड़े निकालने,मूत्र संबंधी समस्या,गर्भ निरोधक के तौर पर,जोड़ों का दर्द कम करने,कुष्ठ,दाद,मिर्गी,बुखार में,सूजन कम करने में,बिच्छू के काटने पर सहित घाव ठीक करने आदि में भी पलाश का महत्वपूर्ण उपयोग है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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