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खुशियाँ ले गई मेरी

अख्तर अली शाह `अनन्त`
नीमच (मध्यप्रदेश)

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जिंदगी में आग भर गई,
मुझको वो तबाह कर गई।
खुशियाँ बाढ़ ले गयी मेरी,
सारी हसरतें भी मर गईll

मेघ ऐसे बरसे टूटकर,
हो गया था सब इधर-उधर।
हर तरफ था पानी-पानी बस,
बरखा ढा गई थी वो कहरll
याद तबाही है आज तक,
जिन्दगी में गम वो भर गई।
खुशियाँ बाढ़ ले गई मेरी,
सारी हसरतें भी मर गईll

घर सभी वीरान हो गए,
दर्द की दुकान हो गए।
अब सिरों पे छत नहीं कोई,
अब सहन प्रधान हो गएll
आसमानी छत को देखकर,
रूहें फलक तक सिहर गई।
खुशियाँ बाढ़ ले गयी मेरी,
सारी हसरतें भी मर गईll

गाय भैंस बकरियों का धन,
जल में हो गया सभी दफन।
फसलें खेतों की चली गई,
तन हुआ हो जैसे निर्वसनll
कुछ पलों में निर्दयी चमक,
चेहरे से मेरे किधर गई।
खुशियाँ बाढ़ ले गयी मेरी,
सारी हसरत भी मर गईll

कजरा मेरी आँख का धुला,
आँसूओं की धार में घुला।
स्वाद हो गया है बे मजा,
जब गले हँसी रुदन मिलाll
मांग सिंदूरी न हो सकी,
स्वप्न की मिठास झर गई।
खुशियाँ बाढ़ ले गई मेरी,
सारी हसरतें भी मर गईll

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