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नए भारत के सुखद संकेत

ललित गर्ग
दिल्ली
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विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के वार्षिक विजय-उद्बोधन का न केवल राष्ट्रीय, बल्कि सामाजिक एवं राजनीतिक महत्व है। सर संघचालक ने राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों का उल्लेख करते हुए संघ सोच को फिर से स्पष्ट किया है। उन्होंने देश में साम्प्रदायिक सद्भाव पर विस्तृत दृष्टिकोण पेश करते हुए न केवल हिन्दू शब्द का विरोध करने वालों पर करारा प्रहार किया है, बल्कि अराजकता का माहौल पैदा करने वाले मुस्लिम संगठनों पर भी सीधी चोट की है। उन्होंने देश के समग्र एवं त्वरित विकास के लिए जनसंख्या नियंत्रण की नीति पर जोर दिया है। उद्बोधन देकर उन्होंने जहां देश की जनता को जगाया, वहीं राजनीतिक दलों की नींद उड़ा दी। सरकार को कुछ जरूरी कार्यों का दिशा-निर्देश भी दिया गया। संघ की नजरों में धर्मांतरण और घुसपैठ से जनसंख्या का संतुलन बिगड़ा है और देश का विकास बाधित हुआ है, डॉ. भागवत इन समस्याओं से निपटने और उनके खिलाफ जनमत का निर्माण करने के लिए संकल्प ले चुके हैं। उन्होंने देश के सामने कुछ ऐसी बड़ी चुनौतियों को रेखांकित किया, जिसे लेकर राजनीतिक दलों एवं साम्प्रदायिक संगठनों की भृकुटि कुछ तन गई है।
उद्बोधन एक छोटी-सी किरण है, जो सूर्य का प्रकाश भी दे रही है और चन्द्रमा की ठण्डक भी। और सबसे बड़ी बात, भागवत जो हो रहा है और जो होना है उसकी स्पष्ट दृष्टि से तटस्थ विश्लेषण करते हुए सरकार की रक्षा, आर्थिक नीतियों से काफी संतुष्ट दिखाई दिए। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया का भरोसा बढ़ा है। भारत की ताकत बढ़ी है। दुनिया में भारत की आवाज सुनी जा रही है। दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा और साख बढ़ी है और आत्मनिर्भर भारत की आहट सुनाई दे रही है। उन्होेंने बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए घरों और समाज के वातावरण को स्वस्थ बनाने का संदेश दिया। निश्चित ही उद्बोधन कोई स्वप्न नहीं, जो कभी पूरा नहीं होता। यह तो भारत को सशक्त एवं विकसित बनाने के लिए ताजी हवा की खिड़की है। संघ प्रमुख ने देश के मुस्लिम समुदाय को अराजकता फैलाने वाले तत्वों से सतर्क रहने की नसीहत भी दी। संघ और मुस्लिम समाज में संवाद की आज सकारात्मक कोशिशें हो रही हैं। संघ इस संवाद को कायम रखेगा, क्योंकि समाज को तोड़ने के लिए बहुत सी कोशिशें हो रही हैं। संघ को इस बात के लिए बार-बार निशाना बनाया जाता रहा है कि वह मुस्लिम समाज को नजरंदाज करता है, लेकिन ऐसा नहीं है। देश में कई जगह हुई जघन्य घटनाओं का जिक्र करते हुए डॉ. भागवत ने मुस्लिम समुदाय से यह आग्रह किया कि वे अन्याय, असत्य, अत्याचार के खिलाफ खड़े हों। हम सबको मिलकर संविधान का पालन करना चाहिए और ऐसी क्रूरतम घटनाओं का विरोध मुखरता से किया जाना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि संघ को संकीर्ण नजरिए से देखने की बजाय व्यापक देशहित में देखा जाना चाहिए। जरूरी यह भी है कि जब भी कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ जैसे अराष्ट्रीय संगठनों के़ खिलाफ कोई कदम उठाया जाए तो उसे सकारात्मक लेना जरूरी है।
संघ की राष्ट्रवादी विचारधारा से अनेक मुस्लिम संगठन एवं लोग सहमत हैं। संघ की राष्ट्रभक्ति पर तनिक भी संदेह नहीं किया जा सकता। प्राकृतिक आपदाएं हों या युद्ध काल संघ का एक-एक स्वयंसेवक राष्ट्र के लिए हमेशा तैयार रहा। यही कारण है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू को संघ की सराहना करनी पड़ी थी।
संघ प्रमुख देशहित में अच्छी रचनात्मक एवं सृजनात्मक बातें करते हैं, बदलाव चाहते हैं, राष्ट्र को तोड़ना नहीं जोड़ना चाहते हैं, अच्छी बात यह भी है कि संघ एक जागरूक संगठन है और हर समस्या पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। हर व्यक्ति के दिमाग में एक समस्या है और हर व्यक्ति के दिमाग में एक समाधान है। एक समस्या को सब अपनी समस्या समझे और एक का समाधान सबके काम आए। समाधान के अभाव में बढ़ती हुई समस्या संक्रामक बीमारी का रूप न ले सके, इस दृष्टि से आज का समाधान आज प्रस्तुत करने के लिए संघ निरन्तर जागरूक रहता है। इसी लिए, भाषण में समान जनसंख्याा नीति बनाने पर जोर दिया है। इस मसले पर बारीकी से समझने की जरूरत है।
कहते हैं कि जनसंख्या में असमानता भौगोलिक सीमाओं में बदलाव लाती है। यही देश विकास का बाधक तत्व है, इसी से गरीबी कायम है। इसके बावजूद इसके ऐसे ज्वलंत विषयों पर भी राजनीति की जाती है, संकीर्णता दर्शाई जाती है।
किसी भी समाज में बिखराव की स्थिति होती है तो उसकी क्षमताओं का पूरा उपयोग नहीं हो सकता। उपयोग के लिए क्षमताओं को केन्द्रित करना जरूरी है। समाज का हर व्यक्ति अपने-आपमें एक शक्ति है। इस शक्ति को काम में लेने से पहले उसे एकात्ममुख करना जरूरी है। डॉ. भागवत के आह्वान का हार्द व्यवस्था को सशक्त बनाते हुए राष्ट्र को नई शक्ल देने का है। वास्तव में यदि हम भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं तो हमें अपनी सोच और अपने तौर-तरीके बदलने होंगे। देश की जनता का भी यह दायित्व बनता है कि वह अपने हिस्से के संकल्प ले।

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