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नज़र से नज़र

कमलेश वर्मा ‘कोमल’
अलवर (राजस्थान)
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नज़र ने नज़र से कहा,- ख़ामोश क्यों है ? आज इतनी,
नज़र ने नज़र से कहा-नहीं मैं तो हूँ बस थकी हुई सी।

नज़र ने नज़र को नहीं पहचाना, बस बुझी हुई सी,
नज़र है कि नज़र आती नहीं बस जान पड़ती-सी।

नज़र ही तो है, बस नज़र ही नहीं आती,
नज़र की हर नज़र बस नज़र में जान जाती।

नज़र ने नज़र से कहा-मत मायूस हो नज़र से,
नज़र ने नज़र से कहा-खता नहीं हुई इस नज़र से।

फिरी नज़र से नज़र, मिला न पाई नज़र से नज़र,
बेजान-सी जान पड़ी नज़र थकी-सी जान पड़ी नज़र।

यूँ फेर लेना नज़र से नज़र ख़ामोश है आज नज़र,
नज़र की चमक नहीं दिखी बस थकी-सी है आज नज़र।

जब मिली दोनों नज़र से नज़र खिल उठी दोनों नज़र,
ख़ामोश होकर भी चमक उठी दोनों नज़र॥

परिचय –कमलेश वर्मा लेखन जगत में उपनाम ‘कोमल’ से पहचान रखती हैं। ७ जुलाई १९८१ को दुनिया में आई रामगढ़ (अलवर) वासी कोमल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला अलवर (राजस्थान) में ही है। आपको हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। एम.ए. व बी.एड. तक शिक्षित कमलेश वर्मा ‘कोमल’ का कार्यक्षेत्र व्याख्याता (निजी संस्था) का है। इनकी लेखन विधा-गीत व कविता है। इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं तो ब्लॉग पर भी लेखन जारी है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-“कविता के माध्यम से विचार प्रकट करना एवं लोगों को जागरूक करना है।” पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, एवं जय शंकर प्रसाद हैं तो विशेषज्ञता- पद्य में है। बात की जाए जीवन लक्ष्य की तो भारतीय समाज में सम्मान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार -“राष्ट्र एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास राष्ट्र पर निर्भर करता है। हिंदी हमारी राष्ट्र और मातृत्व भाषा है, जो सरल तरीके से समझी और बोली भी जा सकती है। इसलिए इसे बढ़ाया ही जाना चाहिए।”