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नारी शक्ति

ओमप्रकाश अत्रि
सीतापुर(उत्तरप्रदेश)
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नारी!
नहीं रही
अब अबला,
और न ही
पुरुषों की कैद में
गिरफ़्त है।
वह पुरुषों के साथ,
कदम से कदम मिलाकर
चलना सीख गई है।

माँ के रूप में,
मातृत्व की
ममता लुटाती,
पत्नी के रूप में
पत्नी धर्म निभाती है,
राजनीति से लेकर
खेल तक,
जमीं से लेकर
अन्तरिक्ष तक,
हर जगह अपनी
पहचान बनाना सीख गई है।

नारी!
लक्ष्मीबाई बन,
देश के हित
बलिदान का पाठ
जग को सुना रही है,
मदद टेरेसा बन,
शान्ति का बीज
जहां मे बो रही है।

मीरा बन,
जहर के
प्याले को पीकर
प्रेम की धुन गा रही है,
राधा बन,
प्रेम पर सब-कुछ
न्योछावर कर रही है।

नारी !
सावित्री बन,
पति की खातिर
अब यमराज से भी,
टकराना सीख गई है।

नारी!
पिता की पगड़ी बन,
घर चलाना
सीख गई है,
वक्त पर
बनकर पद्मिनी,
जौहर की कला
सब सीख गई है।

नारी ही है
जो आज जग में,
विद्वता की ज्योति से
जग को
प्रकाशित कर रही है,
नारी ही है
जो,सारे
संसार को महका रही है॥

परिचय-ओमप्रकाश का साहित्यिक उपनाम-अत्रि है। १ मई १९९३ को गुलालपुरवा में जन्मे हैं। वर्तमान में पश्चिम बंगाल स्थित विश्व भारती शान्ति निकेतन में रहते हैं,जबकि स्थाई पता-गुलालपुरवा,जिला सीतापुर है। आपको हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी सहित अवधी,ब्रज,खड़ी बोली,भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। उत्तर प्रदेश से नाता रखने वाले ओमप्रकाश जी की पूर्ण शिक्षा-बी.ए.(हिन्दी प्रतिष्ठा) और एम.ए.(हिन्दी)है। इनका कार्यक्षेत्र-शोध छात्र और पश्चिम बंगाल है। सामाजिक गतिविधि में आप किसान-मजदूर के जीवन संघर्ष का चित्रण करते हैं। लेखन विधा-कविता,कहानी,नाटक, लेख तथा पुस्तक समीक्षा है। कुछ समाचार-पत्र में आपकी रचनाएं छ्पी हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-शोध छात्र होना ही है। अत्रि की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य के विकास को आगे बढ़ाना और सामाजिक समस्याओं से लोगों को रूबरू कराना है। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारीसिंह ‘दिनकर’ सहित नागार्जुन और मुंशी प्रेमचंद हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज- नागार्जुन हैं। विशेषज्ञता-कविता, कहानी,नाटक लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“भारत की भाषाओंं में है 
अस्तित्व जमाए हिन्दी,
हिन्दी हिन्दुस्तान की न्यारी
सब भाषा से प्यारी हिन्दी।”

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