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न मिला करार-ए-दिल

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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ग़ज़ल विधान में-ए-की मात्रा नगण्य, ११२१२, ११२१२, ११२१२, ११२१२…

न किसी से प्यार मिला मुझे, न दिया किसी ने करार-ए- दिल।
न किसी ने दी वो तसल्लियाँ, न मिला किसी से करार-ए- दिल।

न ही महजबीं ने दिया मुझे, न किसी भी नाजनीं से मिला,
न मिली कहीं भी वो दिलनशीं, जो कभी सजा दे करार-ए-दिल।

मैं करूं सभी से वो प्यार जो, न कभी भी याद मिटा सके,
हो दिलों में मेरा भी आशियाँ, तो सजा रहे ये करार-ए-दिल।

न खयाल दिल में बहार का न ही महफिलों का भी शौक है,
है यकीन मुझको मिलेगा वो, मैं तलाशता जो करार-ए-दिल।

है फितूर दिल में सजा हुआ, मैं कभी मिटा न सका इसे,
जो खुदी सजे तो सजा ‘चहल’, न हो बेबसी में करार -ए-दिल॥

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।