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भक्ति में शक्ति

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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शक्ति, भक्ति और दिखावा…

मेरे एक मित्र हैं श्रीराम सिंह। उनके ७ बेटे हैं, पर बेटी के लिए दोनों प्राणी तरसते रहते हैं। १ बेटी की चाह में उन्होंने ७ बेटे पैदा कर दिए।
जब लोगों के घरों में बेटियों की किलकारी गूंजती थी, तो सिंह दंपति मन मसोस कर जाते थे। किसी के घर बारात आती थी, द्वार पर शहनाई बजती थी, तो श्रीमती चंद्रा देवी रोने लगती थी कि मेरे द्वारा पर कभी शहनाई नहीं बजेगी ? मैं कभी कन्यादान नहीं कर पाऊंगी।
एक दिन किसी ने श्रीराम जी से कहा-“भाई साहब आप नवरात्रि में भक्ति भाव से कन्या पूजन करवाइए। आपके घर माँ दुर्गा की कृपा से अवश्य कन्या आएगी। आप निराश न होइए। आप यह नेक कार्य करके देखिए। बहुत से पूजा-पाठ किए होंगे, एक बार यह भी करके देख लीजिए। आपका सपना जरूर पूरा होगा।”
श्रीराम सिंह ने नवरात्रि के दिन ९ कन्याओं को बुलाकर उनकी भली-भांति पूजा की। बहुत अच्छे तरीके से उनकी आव-भगत की। ढेर सारे उपहार उन बच्चों को दिए।

माँ दुर्गा की कृपा देखिए कि, अगले साल उनके घर में नन्हीं-मुन्नी सुंदर-सी परी आ गई। सिंह दंपति खुशी से फूले न समाए। फिर इस साल भी वे धूमधाम से भक्ति-भाव से कन्या पूजन की तैयारी में जुट गए।

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।