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अथ स्वरुचिभोज प्लेट व्यथा

नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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सलाद,
दही बड़े,
रसगुल्ले,
जलेबी,
पकौड़े,
रायता,
मटर पनीर,
दाल,
चावल,
रोटी,
पूरी
के बाद…
ज्यों ही मैंने
प्लेट में पापड़ रखा,
प्लेट से रहा न गया
और बोली-
अब बस भी करो,
थोड़ा सुस्ता लो
पहले इतना तो खा लो।
घर में तो,
एक गिलास पानी के लिये
पत्नी को आवाज लगाते हो,
यहाँ इतनी प्लेट भरके भी
फुर्ती दिखाते हो,
फिर मन ही मन बड़बड़ाई-
क्या जमाना है,
तुम तो खा पी के चले जाओगे
मुझे तो धो पोंछ के फिर आना है,
सौ रुपये में
मेरी जान लोगे!
अभी पेट से बोलती हूँ,
सुबह तक सब जान लोगे॥

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