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पर्यावरण बचाओ…

राधा गोयल
नई दिल्ली
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आज मैं विकास के नाम पर,
लगातार काटा जा रहा हूँ
मैं चीत्कार कर रहा हूँ,
लेकिन किसी को मेरा रुदन दिखाई नहीं पड़ रहा
यह हाल तो तब है,
जबकि सारी धरती में दरारें पड़ गई हैं
वह सिसक रही है।

सारे पेड़ काट डाले हैं,
पशु-पक्षियों के बसेरे उजाड़ डाले हैं
उनको जीवन के लाले पड़ गए हैं,
पशु-पक्षियों की कितनी ही प्रजातियाँ
लुप्त हो चुकी हैं
पशु-पक्षी कैसे होते हैं!
बच्चों को बताने के लिए केवल चित्र ही बचे हैं।

हरी-भरी वसुन्धरा पर,
कांक्रीट के महल खड़े कर दिए
सारे पेड़ काट डाले,
इसी कारण ‘कोरोना’ काल में
मुफ्त में मिलने वाली ‘ऑक्सीजन’ के लिए,
त्राहि- त्राहि मची थी…
ऐसा भी समय आया,
जब अपनों की जान बचाने के लिए
लोगों ने मुँहमाँगे दाम पर ऑक्सीजन खरीदी
लेकिन क्या इतना कुछ करके भी…!
अपनों को बचा पाए ?
क्या अपनों को खोकर कुछ सीख पाए ?
क्या ‘चिपको आन्दोलन’ की तरह का आन्दोलन चलाया ?

अब भी इतना नहीं बिगड़ा,
सब-कुछ खत्म होने से पहले
संभल जाओ
इस धरा को फिर से ‘हरा-भरा’ करो।
अपने और बच्चों के जन्मदिवस पर,
पेड़ जरूर लगाओ, और पर्यावरण बचाओ॥

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