एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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झूठों के शहर में सच को,
सिसकते तड़पते देखा है
हर शख्स को बैचैन होते,
खुद को सिमटते देखा है।
ख्वाहिशों की चादरों को,
हमने पाँव पसारे देखा है
रिश्तों की बुनियाद पर ये,
फिर पैबंद संवारे देखा है।
घर की चारदीवारी में ही,
अजीब सिहरन होती है।
फिज़ाओं की सर्द गर्मी में,
ये कैसी ठिठुरन होती है॥