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पिता, पिता होता है…

डॉ.अनुज प्रभात
अररिया ( बिहार )
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जीना जैसे पिता…

पिता, पिता होता है,
‘माँ’ नहीं
उसके हिस्से में
केवल पालन-पोषण होता है,
इसलिए
वह पत्थर होता है।

पत्थर पर,
किसी खरोंच के
निशान नहीं उगते,
बूंद-बूंद टपक कर
कोई गड्ढा भी बनता है तो,
उसे, उसकी बनावट का रूप
मान लिया जाता है।

भाग-दौड़,
उसके हिस्से में होती है
कठोरता,
उसकी परिभाषा बनती है
इसलिए,
कभी, कहीं कोई
पिता की बात
नहीं कहता।

वह खिलौना लाने वाला,
गोद में
बाजार घुमाने वाला,
स्कूली बस्ते का
बोझ ढोने वाला,
जिंदगी के मायने समझाने वाला
कहीं-
किसी आईने तक में,
परछाई तक नहीं बनता
हाँ, एक नाम होता है,
जन्म के साथ
पुकारने में।

कविता हो या,
कथा-कहानी
लोगों की जुबां पर,
यदि कोई होती है
तो-वह होती है ‘माँ!’
माँ के साथ गर्भ जुड़ता है,
माँ के साथ लोरी जुड़ती है
माँ के साथ-आँचल जुड़ता है,
माँ के साथ-पालन जुड़ता है
आँसू, पीड़ा, कसक जैसे,
सारे ‘दर्द ‘माँ’ के साथ जुड़ते हैं
बच्चे की पहली बोली-
‘माँ’ होती है
और ‘पिता’ शब्द,
कहलवाने वाली भी
‘माँ’ ही होती है।

दर्द-वह दर्द,
जो जिंदगी बनाने में होता है
जिसका बोझ-एक पिता ढोता है,
उसे, कोई नहीं बोलता
कोई नहीं तौलता,
न उसके किस्से होते हैं
न उसकी कहानी बनती है।

यह-
ईर्ष्या, आलोचना, प्रतिकार नहीं
किसी ‘माँ’ से, किसी पिता का…,
‘माँ’, माँ होती है
पर, पिता भी ‘पिता’ होता है
जो कठोर होता है,
लेकिन
कोमल इतना कि,
कोमलता का
अहसास तक नहीं होने देता।
जिंदगी बनाने से लेकर,
बुढ़ापे की लाठी की
चाहत तक॥

परिचय-एम.ए. (समाज शास्त्र), बी.टी.टी. शिक्षित और साहित्यालंकार सहित विद्यावाचस्पति व विद्यासागर (मानद उपाधि) से अलंकृत राम कुमार सिंह साहित्यिक नाम डॉ. अनुज प्रभात से जाने जाते हैं। १ अप्रैल १९५४ को अंचल नरपतगंज (अररिया, बिहार) में जन्मे व वर्तमान में अररिया स्थित फारबिसगंज में रहते हैं। आपको हिंदी, अंग्रेजी, मैथिली सहित संस्कृत व भोजपुरी का भी भाषा ज्ञान है। बिहार वासी डॉ. प्रभात सेवानिवृत्त (शिक्षा विभाग, बिहार सरकार) होकर सामाजिक गतिविधि में फणीश्वरनाथ रेणु समृति पुंज (संगठन) के संस्थापक सचिव और अन्य संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं। स्क्रीन राइटर एसोसिएशन (मुम्बई) के सदस्य राम कुमार सिंह की लेखन विधा-कहानी, कविता, गज़ल, आलेख, संस्मरण है तो पुस्तक समीक्षा एवं पटकथा लेखक भी हैं। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘बूढ़ी आँखों का दर्द’ (कहानी संग्रह), ‘नीलपाखी’ (कहानी संग्रह), ‘आधे-अधूरे स्वप्न’, ‘किसी गाँव में कितनी बार…कब तक ? (कविता संग्रह) सहित ‘समय का चक्र’ (लघुकथा संग्रह) दर्ज है तो मराठी में अनुवाद (बूढ़ी आँखों का दर्द)भी हुआ है। ऐसे ही कुछ पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं। अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो दलित साहित्य अकादमी (दिल्ली) से बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर नेशनल फेलोशिप (२००८), रेणु सम्मान (बिहार सरकार), साहित्य प्रभा विद्याभूषण सम्मान (देहरादून) और साहित्य श्री (छग), साहित्य सिंधु (भोपाल) आदि सम्मान प्राप्त हुए हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य व हिन्दी भाषा के प्रति भारतीय युवाओं को जागरूक करना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक फणीश्वरनाथ रेणु, बाबा नागार्जुन, मुंशी प्रेमचंद, हिमांशु जोशी और प्रेम जनमेजय हैं। माता-पिता को प्रेरणा पुंज मानने वाले डॉ. अनुज प्रभात का जीवन लक्ष्य साहित्य व मानव सेवा है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-“देश के प्रति हम सभी समर्पित होते हैं, किन्तु देश के विकास के लिए भाषा का विकास आवश्यक है। हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी है और हम उसके प्रति न संवेदनशील हैं और न ही जागरूक। आज निःशुल्क टोल नम्बर पर भी यही बोला जाता है-‘अंग्रेजी के लिए १ दबाएं, हिन्दी के लिए २ दबाएं…।’ हिन्दी के लिए १ दबाएं क्यों नहीं ? बात छोटी है…, पर हमें ध्यान देना चाहिए।”

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