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पिता

सुरेश चन्द्र सर्वहारा
कोटा(राजस्थान)
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१६ जून `पितृ दिवस’ विशेष……….
चले साथ में जब पिता,मेरी उँगली थाम।
दूर-दूर तक था नहीं,तब चिंता का नामll

लगता है जैसे पिता,घर की चारदिवार।
आ पाती ना आँधियाँ,जिसको करके पारll

सब सोते हैं चैन से,भर मन में उल्लास।
जब तक घर में है पिता,डर ना आते पासll

जीवनभर ढोते रहे,खुद कर्जों का भारl
मुस्काए फिर भी पिता,पालन में परिवारll

टूट न जाएँ हम कहीं,पड़ें नहीं कमजोर।
अतः पिता रोए नहीं,सह पीड़ाएँ घोरll

रहे पिता के स्वर भले,मधुर रसों से दूर।
लेकिन इनमें थी छुपी,मंगल धुन भरपूरll

अपने से ज्यादा रहा,जिनको प्रिय परिवार।
कर्त्तव्यों के रूप ही,रहे पिता साकारll

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl

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