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विकास करें रचनात्मकता का

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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रचनात्मकता या सृजनात्मकता(क्रिएटिविटी) को जानना और प्रयोग करना मनुष्य में शिक्षा के आविष्कार के पहले से ही चली आ रही है। यह मनुष्य की अपने विचार और संदेश को अलग तरह से बतलाने की जिज्ञासा है। रचनात्मकता, बड़ा बनने के लिए नहीं है,बल्कि अलग दिखने के लिए है। रचनात्मकता जीवन के,दुनिया के किसी भी क्षेत्र में की जा सकती है। इसमें ज्ञान और उम्र की भी रोक नहीं होती, बस आपका अपना एक अलग विचार
(आइडिया) और प्रभावी(अपीलींग )विचार होना चाहिए।
आविष्कार,रचना करना और रचनात्मकता में अंतर क्या है ? उदाहरण से समझें तो फिलामेंट का पहला बल्ब आविष्कार है,पर बल्ब के तरह तरह के खूबसूरत आकार सृजनात्मकता या सजावट है। फिर एल.ई.डी. बल्ब आये, जो आविष्कार है,पर उन तरह-तरह के बल्बों को जमाना और जगमगाहट को भिन्न-भिन्न प्रकार से दिखलाना सजावट या सृजनात्मकता है।
‘रचनात्मकता’ किसी विषय,वस्तु या समाज के नियमों में न बंधकर,मनुष्य की स्वंय प्रस्तुति होती है। इसकी कोई सीमा नहीं होती। यह तो केवल एक अलग सोच है अपनी बात कहने की,पर बहुत सारे क्षेत्रों में आजकल इसने सबसे ऊंचा स्थान बना लिया है। जैसे-सिनेमा, फैशन,कहानी-कविता,सज्जा-सजावट, चित्रकारी आदि। यहां आज आपकी सफलता इसी बात पर निर्भर है कि आप कितने रचनात्मक हैं।
इसका उदगम क्या है ?,या यूँ कहें कि इसकी उत्पत्ति केसै होती है ? भारतीय प्राचीन साहित्य कहते हैं कि हमारा दाहिना मष्तिष्क तर्क और बांया मष्तिष्क रचनात्मकता के लिए है। वैज्ञानिकों ने भी इस पर मोहर लगाई है और इसमें जोड़ा है कि दांया भाग बुद्धिमता और बांया भाग भावनाओं को नियंत्रित करता है, और भावना ही ही रचनात्मकता-सृजनात्मकता की जनक हैं।
सबसे नयी खोज कहती है कि,सोचने (थिंकिंग) को महसूस करने से ही रचनात्मकता का जन्म होता है। आज की महत्ती आवश्यकता है कि रचनात्मकता के गुण और क्षमता का विकास किया जाये और भरपूर उपयोग में लाया जाये।आखिर यह विचार कितना आत्मविश्वास भरता है कि-,”मैंने जैसा किया,वह ना तो पहले हुआ है ना ही कभी होगा,पर इसमें सकारात्मकता’ सामाजिक मापदंड,और भावनाओं की मर्यादा का भी ख्याल रहे।

परिचय-संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी  विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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