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प्यास बुझाऊं तुझ संग अपनी

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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प्यास बुझाऊं तुम संग अपनी
तुम नदिया-सी मीठी बयार
सांझ-सवेरे तुम ही दिल में
प्यास सरीखा तुमसे प्यार।

हो तुम अमृतधारा प्रीत की
मैं हूँ सूखी धरा-सा यार,
प्रीत बरसाओ सावन सरीखी
अंकुरित हो जो पुष्पों-सा सार।

अम्बर,नभ,आकाश एक है
इश्क,मोहब्बत नाम अनेक है,
प्रीत है तुमसे चाँद सरीखी
कंठ मेरे तुम तारों-सा हार।

ओझल हो क्यों बोझिल करती
नयनों में क्यों नीर तुम भरती,
विरह-मिलन हृदय का कर दो
भले न हो आँखों से आँखें चार।

प्यास बुझाऊं तुम संग अपनी
संग नहीं तो कविता गढ़ दी।
गूंथ रहा मैं शब्दों की माटी,
कुम्हार सरीखा तुमसे प्यार॥

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