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प्रकृति और हम

एस.अनंतकृष्णन
चेन्नई (तमिलनाडु)
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प्रकृति प्यार करेगी तो,
हमारा जीवन शांति पूर्ण।
प्रकृति कुपित है तो अशांति,
कारण हैं हम मानव।

नदियों में, झीलों में,
मोरी का पानी
पहाड़ों पर इमारतों की संख्या,
झीलों में मिट्टी भरकर बनती इमारतें।

कारखानों में धुआं,
वाहनों में धुआं
वायु प्रदूषण,
चित्रपट के संवाद,
मोबाइल में अश्लील चित्र-गीत।

प्रकृति का प्रदूषण,
विचारों का प्रदूषण
परिणाम स्वरूप,
प्रकृति कुपित
सुनामी, ‘कोरोना’, भूकंप,
संक्रामक कीटाणुओं का आक्रमण।

गंगा जल पवित्र है,
पर किनारे पर मिनरल वाटर बोतल
हर वस्तु में मिलावट।
प्रकृति बनाती हमें,
प्रकृति बिगाड़ती हमें॥

परिचय –एस.अनंतकृष्णन तमिलभाषी होकर भी तमिलनाडु में हिंदी प्रचारक हैं। आपकी शैक्षणिक योग्यता एम.ए. (हिंदी) और एम.एड. है। अवकाश प्राप्त प्रधान अध्यापक होकर आप चेन्नै में हिंदी प्रचारक, शिक्षा महाविद्यालय में प्राध्यापक सहित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (चेन्नै) से भी जुड़े रहे हैं। स्वतंत्र लेखक के रूप में आप सामाजिक मीडिया माध्यमों में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हैं। आपको हिंदी साहित्य संस्थान (लखनऊ) से सौहार्द सम्मान २०२१, कबीर कोहिनर सम्मान, जिला शिक्षा अधिकारी, तमिलनाडु हिंदी अकादमी, हिंदी साहित्य अकादमी (मुम्बई), साहित्य भूषण, साहित्य भास्कर और श्रेष्ठ रचनाकार सहित ५० से अधिक सम्मान मिल चुके हैं। आप राज्य की जनता को राष्ट्रहित के लिए हिंदी सिखाते हैं।