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प्रिये मांगे रंग चुनरिया

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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प्रिये मांगे रंग चुनरिया
मैं बेरंग-सा आप,
मैल छुड़ाऊं तन अपना
और तन पर रगड़ूं राख।

रुह फ़कीरों-सी अपनी
समझूं,न मंदिर,न जाप,
कहां से दूं तुझे अटरिया
हो बेखूंटा भटकूं आप।

महल-चौबारे ख्वाब तेरे
धूना,हाथ मेरे हैं ख़ाक,
खुद से खुद झगड़ा मेरा
रंग मानो जीवन है श्राप।

रंग-रंगीली,तू छबीली
भाए कान्हा बांसुरी वाद,
जीवन मेरा डमरू जैसा
दोनों ओर से पड़ती थाप।

ढूंढ राजा ख्वाबों का दूजा
मैं फक्कड़ औघड़ दास।
रणछोड़ प्रीत निभाऊं कैसे,
ओढ़ चुनरिया अपनी आप॥

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