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प्रेम का अद्भुत समीकरण ‘दबे पाँव चुपचाप’

डॉ.पूजा हेमकुमार अलापुरिया ‘हेमाक्ष’
मुंबई(महाराष्ट्र)

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समीक्षा….

प्रेम! मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति…भावनाओं का वो प्रदर्शन है, जहाँ भाषा भी गौंण पड़ जाती है। यही कारण है कि, पारिवारिक, धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि अनुष्ठान अपने अस्तित्व का प्रमाण ढोल-ताशे, नगाड़े, बैंड-बाजे, घुँघरूओं की झंकार, ढोलक की थाप, गीत, नृत्य आदि द्वारा चिल्ला-चिल्लाकर व्यक्त करते हैं। यदि राजस्थान की ओर रुख करें तो, देखते हैं कि मातम में भी तो रुदालियों द्वारा चीख-चीख कर शोक-विलाप व्यक्त करने का प्रचलन रहा है। संसार में अनुराग अथवा प्रेम एकमात्र ऐसा अनुष्ठान है, जो मानव जीवन में दबे पाँव चुपचाप ही प्रवेश करता है और अपने होने का कोई प्रमाण देना पड़े;यह उसे कतई नहीं सुहाता। प्रेम एहसास तत्व है, इसे स्पर्श करना तथा इसकी गहराइयों के मापदंड को आँक पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है। हिंदी साहित्य जगत में भाषा प्रबुद्ध, कलम के सिपाही, साहित्य की बारीकियों के प्रखर ज्ञाता तथा विभिन्न क्षेत्रों में नि:स्वार्थ भाव से सहयोग करने वाले डॉ. अश्वनी शांडिल्य लंबे अरसे से अपनी साहित्यिक रचनाओं से पाठकों को बाँधे हुए हैं।
अनेक साहित्यिक कृतियाँ, जैसे-कविता, कहानी, लघुकथा, व्यंग्य, समीक्षा आदि के उपरांत पाठक वर्ग के समक्ष प्रस्तुत है आपका अनुपम काव्य संग्रह ‘दबे पाँव चुपचाप’। बहुचर्चित साहित्यकार अलका शरण बोस ने अपनी सशक्त लेखनी से संग्रह हेतु शुभकामनाएँ प्रेषित की है।
‘दबे पाँव चुपचाप’ काव्य संग्रह में कुल ४५ कविताएँ हैं, जिन्हें २ अलग-अलग विषयों में बाँधा गया है-‘कुछ कही… कुछ अनकही…’ तथा ‘देश और समाज’। संग्रह की प्रेम बूटियों की बुनाई-कढ़ाई की शुरूआत उसके आने पर, तुम आए, तेरा आगमन, अहसास, बारिश, उसने जीत लिया है मुझको, उसकी नजरें आदि रंगीन एवं कोमल धागों से की गई है। प्रत्येक कविता के अंत में एक आकर्षक चित्र उकेरा गया है, जो अंत को मनमोहक बनाने का प्रयास है।
कबीर की प्रेम पंक्तियों से सभी परिचित हैं-
‘पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।’
जीवन में प्रेम बिना रिश्तों के क्या मायने हो जाते हैं, इसे कवि बड़ी मार्मिकता से व्यक्त करते हुए लिखते हैं कि,
‘हर रिश्ता मरघट-सा लगता
घर माटी का घूरा रे
प्रेम बिना सब सार हीन है
सारा जगत अधूरा रे’।
जिस माटी की देह की सुंदरता और प्रेम के लिए इंसान समस्त विश्व से लड़ मरता है, उसी प्रेम के अभाव में कवि को प्रत्येक रिश्ता मोक्ष द्वार अर्थात् श्मशान जैसा प्रतीत होता है, क्योंकि यही वह स्थान है जहाँ किसी-से-किसी का नाता नहीं होता। संस्कार और रीति- रिवाज के नाम पर अपना ही अपने को फूँक देता है। ‘घर माटी घूरा रे’ कितनी गहराई समाहित है इस पंक्ति में। जिस ‘मकान’ को ‘घर’ बनाने में इंसान अपनी पूरी जिंदगी लगा देता है, लेकिन बिन प्रेम के वही घर माटी के ढेर (कूड़े)-सा लगता है। कवि के विचारों और भावों में अद्भुत गहराई है।
विश्व में अनेक युद्ध हुए, इनमें न जाने कितने घायल तो कितने बर्बाद हुए, लेकिन अश्वनी जी प्रेम युद्ध की बात कुछ यूँ करते हैं-
‘उसने जीत लिया है मुझको
बिन हथियार’
प्रेम में वह ताकत है जहाँ किसी अस्त्र-शस्त्र की आवश्यकता नहीं। उसे तो अनुराग द्वारा ही जीत सकते हैं। प्रेम विहीन स्थिति में कवि कहते हैं कि-
‘सूना समीर सूना मौसम
सूनी धरती सूना उपवन
सूने नभ में सूने खग-सा
सूना-सूना-सा ये जीवन
सूनी साँसों के तारों में
भर दी मदिर-मदिर झंकार’।
प्रेम में वह ताकत है कि, बिगड़ते काम भी बना देने की शक्ति रखता है, वहीं क्रोध बनते काम बिगाड़ने का पूरा श्रेय अपने माथे मड़ लेता है। इसी संदर्भ में शांडिल्य जी लिखते हैं-
‘क्रोध का राक्षस
जब डग भरने लगे
तो उसकी अंगुली पकड़ लेता है
प्रतिशोध
उसकी गोद में चढ़ जाता है
उन्माद’।
सही कहा है कि, क्रोध शैतान अर्थात राक्षस का स्वरूप होता है। वह सिर्फ विनाश की ओर ही घसीटता है। जब सब तहस-नहस हो जाता है तो, उस वक्त शेष होता है ग्लानि, विलाप, प्रायश्चित…।
प्रेम प्रेम होता है, चाहे वह माया, काया, धर्म या फिर सत्ता का हो। सत्ता प्रेम के समक्ष सभी प्रेम फीके लगते हैं। सत्ता का प्रेम व्यक्ति को नासूर बना देता है। कवि कहते हैं-
‘सिंहासन के मद से
किसी असहाय का दर्द
चाटुकारिता की विभिन्न धुनों का शोर
उन्हें कर देता है बधिर।’
बचपन में माँ से सीखी थी आँखों की भाषा, जुबानी भाषा, इशारों की भाषा और विद्यालय में शिक्षक ने सिखाई थी लिखित और मौखिक भाषा। अब कवि से सीखी आँसुओं की भाषा। कितनी बार सुना है आँसू दु:ख और खुशी दोनों बयान कर देते हैं, लेकिन कवि कुछ यूँ लिखते हैं-
‘आँसुओं की भी अपनी
अलग होती है भाषा
इनका अवसर है
इनकी विषयवस्तु
इनका प्रवाह है
इनके अलंकार
गला भर आना है
इनका आरोह-अवरोह
नाक का फड़कना है
इनकी मौलिकता
सुबकना-सिसकियाँ हैं’।
प्यार होने के भी अलग-अलग पहलू होते हैं, ‘कभी नज़रों से, कभी सूरत से, कभी अदा से, कभी छोटी- सी मुलाकात से, तो कभी आपसी टकराहट से। कवि ने कुछ अद्भुत अंदाज में प्यार होने के पहलू को व्यक्त किया है। उनकी कल्पना के मुताबिक-
‘कई बार
हादसे की तरह भी होता है प्रेम
कोई आपकी जीवन-गाड़ी को
अचानक मार दे
कोमल-सी टक्कर
बहुत जोर से’।
प्यार जब हादसे की तरह होता है, तो व्यक्ति हतप्रभ, घायल, अपाहिज, वेदनाओं के अस्पताल में भर्ती होना आदि यातनाओं से रू-ब-रू होता है। ठीक इसके विपरीत टक्कर मारने वाला शख्स जख्मों पर पश्चाताप के आवरण में लिपटा, अपराध बोध-सा कभी-कभी दया का लेप लगाने पहुँचता है।
‘दबे पाँव चुपचाप’ संग्रह (पृष्ठ संख्या-११०, सृष्टि प्रकाशन, चंडीगढ़) की सभी कविता अपने-आपमें रोचक एवं अनूठी हैं। ये पाठकों को बाँधे रखने का पूरा प्रयास करती हैं। काव्य संग्रह की भाषा शैली की बात की जाए तो वह परिपूर्ण दृष्टव्य होती है। वाक्य एवं शब्द विन्यास में यत्र-तत्र कोई त्रुटि नहीं है। नवीन शब्दों का बड़ी मार्मिकता से प्रयोग किया गया है-डीरेल, सपासप, नचार, बारूदी जहन आदि अनेक शब्दों से ओत-प्रोत है। भावनाप्रधान संग्रह में संगीतात्मक, तुकांत शब्द, लयबद्धता, रस, अलंकार आदि का पुट स्पष्ट दिखाई देता है। पुस्तक का मुख्य एवं मलय पृष्ठ शीर्षक की सार्थकता व्यक्त करता है। यदि अनुक्रम पृष्ठ पर कविता के शीर्षक के साथ पृष्ठ संख्या अंकित की जाती तो, पाठकों को शीर्षक अनुसार पढ़ने में आसानी होती।
डॉ. अश्वनी का प्रेम के प्रति चिंतन-मनन से प्रस्फुटित ‘दबे पाँव चुपचाप’ काव्य संग्रह पाठकों को प्रभावित करेगा। सफल साहित्यकार डॉ. अश्वनी को मेरा साधुवाद। आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास भी है कि, भविष्य में भी आपकी तूलिका सभी पाठकों को यूँ ही लुभाती रहेगी।

परिचय-डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया का साहित्यिक उपनाम ‘हेमाक्ष’ हैL जन्म तिथि १२ अगस्त १९८० तथा जन्म स्थान दिल्ली हैL श्रीमती अलापुरिया का निवास नवी मुंबई के ऐरोली में हैL महाराष्ट्र राज्य के शहर मुंबई की वासी ‘हेमाक्ष’ ने हिंदी में स्नातकोत्तर सहित बी.एड.,एम.फिल (हिंदी) की शिक्षा प्राप्त की है,और पी-एच.डी. की उपाधि ली है। आपका कार्यक्षेत्र मुंबई स्थित निजी महाविद्यालय हैL रचना प्रकाशन के तहत आपके द्वारा ‘हिंदी के श्रेष्ठ बाल नाटक’ पुस्तक का प्रकाशन तथा आन्दोलन,किन्नर और संघर्षमयी जीवन….! तथा मानव जीवन पर गहराता ‘जल संकट’ आदि विषय पर लिखे गए लेख कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैंL हिंदी मासिक पत्रिका के स्तम्भ की परिचर्चा में भी आप विशेषज्ञ के रूप में सहभागिता कर चुकी हैंL आपकी प्रमुख कविताएं-`आज कुछ अजीब महसूस…!` ,`दोस्ती की कोई सूरत नहीं होती…!`और `उड़ जाएगी चिड़िया`आदि को विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्थान मिला हैL यदि सम्म्मान देखें तो आपको निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार तथा महाराष्ट्र रामलीला उत्सव समिति द्वारा `श्रेष्ठ शिक्षिका` के लिए १६वा गोस्वामी संत तुलसीदासकृत रामचरित मानस,विश्व महिला दिवस पर’ सावित्री बाई फूले’ बोधी ट्री एजुकेशन फाउंडेशन की ओर से जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा में लेखन कार्य करके अपने मनोभावों,विचारों एवं बदलते परिवेश का चित्र पाठकों के सामने प्रस्तुत करना हैL