डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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प्रेम है तपस्या प्रेम है पूजा,
प्रेम-सा पावन कोई ना दूजा।
प्रेम में अगर है सच्चाई,
सागर-सी प्यार की गहराई।
प्रेम-भाव रस जिसने पाया,
उसका जीवन बना सुखदाई।
मनभावन प्रेमी को पाकर,
उर की कली फिर खिल आई।
प्रेम की अग्नि जब जलती है,
नित-प्रतिदिन ये बढ़ती है।
जग चाहे फिर बैरी हो जाए,
मन ही मन फिर भी पलती है।
प्रेमी अन्तर्मन में बसता है,
दिल के कोने में रहता है।
दूर अगर हो जाए भी तो,
यादों में हरदम वह रहता है।
कुछ ऐसे किस्मत वाले होते,
जिसने प्यार में मंजिल पाई है।
उनकी भी बनी कहानी जग में,
जिसने प्यार में ठोकर खाई है।
प्यार में बनी मीरा बावरी,
विष का प्याला भी अपनाया।
प्रेम रस में डूबे कान्हा ने,
राधा संग मिलकर रास रचाया।
जीवन का आधार प्रेम है,
सागर-सी प्यार की गहराई।
प्रेम बिना जग सूना-सूना,
डसती है मन को तन्हाई॥