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प्लास्टिक है जहाँ, खतरा वहाँ

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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कोका कोला हर साल ३० लाख टन प्लास्टिक का इस्तेमाल करती है, यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। हर साल ५० हजार करोड़ पीईटी बोतल का उत्पादन होता है और कोका कोला बनती हैं १०,८०० करोड़ टन। ये आँकड़े चौंकाने वाले हो सकते हैं। इसके अलावा पेप्सिको, एच एंड एम्, लोरियल, मार्क्स एंड स्पेंसर समेत १५० कंपनियों ने पैकेजिंग प्रतिबद्धता पर हस्ताक्षर किए, पर अपनी जानकारी नहीं दी, जबकि कोका कोला, मार्स, नेस्ले आदि ने प्लास्टिक पैकेजिंग की जानकारी दी है।
आज पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए बहुत से कारण जिम्मेदार हैं, जिनमें प्लास्टिक एक बहुत बड़ा खतरा बनकर उभरा है। दिन की शुरूआत से लेकर रात में बिस्तर में जाने तक अगर ध्यान से गौर किया जाए तो आप पाएंगे कि प्लास्टिक ने किसी न किसी रूप में आपके हर पल पर कब्जा कर रखा है।
सुबह ब्रश करना हो या ऑफिस में दिनभर कम्प्यूटर पर काम, बाजार से कोई सामान लाना हो, टिफिन और वॉटर बॉटल में खाना और पानी लेकर चलना है तो प्लास्टिक हर जगह है, हर समय है। पहले जानते हैं प्लास्टिक से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य, जो पर्यावरण के प्रति उपजे खतरे की तस्वीर साफ करते हैं।

पूरे विश्व में प्लास्टिक का उपयोग इस कदर बढ़ चुका है और हर साल पूरे विश्व में इतना प्लास्टिक फेंका जाता है कि, इससे पूरी पृथ्वी के ४ घेरे बन जाएं। प्लास्टिक रसायन बीपीए शरीर में विभिन्न स्त्रोतों से प्रवेश करता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि ६ साल से बड़ी ९३ प्रतिशत अमेरिकन जनसंख्या प्लास्टिक केमिकल बीपीए (कुछ किस्म का प्लास्टिक साफ और कठोर, जिसे बीपीए बेस्ड प्लास्टिक कहते हैं) का इस्तेमाल पानी की बॉटल, खेल के सामान, सीडी व डीवीडी जैसी कई वस्तुओं में करते हैं।
आज अरबों पाउंड प्लास्टिक पृथ्वी के पानी स्त्रोतों खासकर समुद्रों में पड़ा हुआ है। ५० प्रतिशत प्लास्टिक की वस्तुएं हम सिर्फ एक बार काम में लेकर फेंक देते हैं। प्लास्टिक के उत्पादन में पूरे विश्व के कुल तेल का ८ प्रतिशत तेल खर्च हो जाता है। प्लास्टिक को पूरी तरह से खत्म होने में ५०० से १ हजार साल तक लगते हैं। प्लास्टिक के एक बेग में इसके वजन से २ हजार गुना तक सामान उठाने की क्षमता होती है।
हम जो कचरा फेंकते हैं, उसमें प्लास्टिक का एक बड़ा हिस्सा होता है। क्या कभी सोचा, यह कचरा जाता कहां हैं ? इस सवाल का जवाब पाने के लिए प्लास्टिक से जुड़े कुछ और तथ्यों पर नजर डालते हैं। पृथ्वी पर सभी देशों में प्लास्टिक का इस्तेमाल इतना बढ़ चुका है कि, वर्तमान में प्लास्टिक के रूप में निकलने वाला कचरा विश्व पर्यावरण विद्वानों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। विकसित देश अक्सर भारत जैसे विकासशील या अन्य अविकसित देशों में इस तरह का कचरा भेज देते हैं। अथवा ऐसे कचरे को जमीन में भी दबा दिया जाता है। जमीन में दबा यह कचरा पानी के स्त्रोतों को प्रदूषित कर जीवन के लिए बड़े खतरे के रूप में सामने आता है। प्लास्टिक की चीजें अक्सर ही पानी के स्त्रोतों में ज्यादा मात्रा में पड़ी मिलती हैं।
कुछ विकसित देशों में प्लास्टिक के रूप में निकला कचरा फेंकने के लिए खास केन जगह-जगह रखी जाती हैं। इन केन में नॉन-बॉयोडिग्रेडेबल कचरा ही डाला जाता है। असलियत में छोटे से छोटा प्लास्टिक भले ही वह चॉकलेट का कवर ही क्यों न हो, बहुत सावधानी से फेंकना चाहिए, क्योंकि इसे फेंकना और जलाना दोनों ही समान रूप से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। प्लास्टिक जलाने पर बड़ी मात्रा में रसायन उत्सर्जन होता है जो साँस लेने पर शरीर में प्रवेश कर श्वसन प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसे जमीन में फेंका जाए, गाड़ दिया जाए या पानी में फेंक दिया जाए, इसके हानिकारक प्रभाव कम नहीं होते।
प्लास्टिक बैग्स से पर्यावरणीय नुकसान को कम करने की दिशा में हर एक इंसान कुछ बेहद जरूरी कदम उठा सकता है। सतर्कता और जागरूकता २ बेहद जरूरी चीजें हैं जिनको प्लास्टिक के खिलाफ अपनाया जा सकता है। सरकार और पर्यावरण संस्थाओं के अलावा भी हर एक नागरिक की पर्यावरण के प्रति कुछ खास जिम्मेदारियां हैं, जिन्हें समझ लिया जाए तो हानि को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।
चूंकि, प्लास्टिक बैग्स बहुत से जहरीले रसायन से मिलकर बनते हैं, इसलिए इनसे स्वास्थ्य और पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचती है। इन रसायनों से बहुत सी बीमारियाँ हो जाती हैं। यह रसायन जानवरों, पौधों और सभी जीवित चीजों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह तथ्य भी कम चौंकाने वाले नहीं कहे जा सकते कि, दुनिया में हर मिनिट १० लाख पानी की प्लास्टिक बोतल खरीदी जाती है। ५ लाख करोड़ प्लास्टिक बैग का उपयोग होता है और हर साल प्लास्टिक के आधे उत्पाद एक बार उपयोग कर फेंक दिए जाते हैं। प्लास्टिक को आधुनिक युग के ईश्वर का अवतार मान सकते हैं, क्योंकि यह अजर-अमर के साथ दीर्घायु है। हम रहें, न रहें पर यह जरूर हमारे बाद भी रहेगा। यानी हम विरासत में जानलेवा सामग्री सौंप कर जा रहे हैं।
इसलिए आवश्यक है कि प्लास्टिक के बैग्स को संभाल कर रखें। इन्हें कई बार इस्तेमाल में लाएं। सामान खरीदने जाने पर अपने साथ कपड़े या कागज के बने झोले लेकर जाएं। ऐसे प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचें, जिसे एक बार इस्तेमाल के बाद ही फेंकना होता है ( पतले ग्लास, स्ट्रॉ आदि)। प्लास्टिक सामान को कम करने की कोशिश करें, यानि दूसरे पदार्थ से बने सामान अपनाएं। ऐसे ही कम से कम प्लास्टिक सामान फेंकने की कोशिश और कम इस्तेमाल को लेकर चर्चा करें।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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