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फिल्मों को चिंतन का हिस्सा बनाना चाहिए

लोकार्पण…

इंदौर (मप्र)।

हमें फिल्मों को चिंतन का हिस्सा बनाना चाहिए। फिल्म जनसंचार का एकमात्र सबसे बड़ा माध्यम है। फिल्म मनोरंजन है तो कला भी है। हमारा समाज सिनेमा प्रेमी है। हमें सिनेमा की समझ वाले समाज की आवश्यकता है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सचिव सच्चिदानंद जोशी ने इंदौर में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय और कला केंद्र द्वारा संयुक्त रूप से
पत्रकारिता तथा जनसंचार अध्ययनशाला में आयोजित लोकार्पण कार्यक्रम में यह बात कही। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार श्रीराम ताम्रकर पर केंद्रित ‘हिंदी सिनेमा विश्वकोश’ का लोकार्पण किया गया। सिनेमा पर पैनल चर्चा का आयोजन भी किया गया। चर्चा में अनुराग पुनेठा संचालनकर्ता रहे। इसमें हिन्दी फिल्म गीतकार स्वानन्द किरकिरे, सचिव श्री जोशी सहित भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. संजय द्विवेदी, फिल्म समीक्षक मयंक शेखर, प्रेरक वक्ता मंजूषा राजस जौहरी और अध्ययनशाला की अध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे वक्ता रहे। चर्चा में डॉ. नरगुंदे ने कहा कि, संस्थान में साप्ताहिक रूप से फिल्म शो में छात्रों को क्लासिक्स दिखाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि बिना समूह के कहानी को दिखाना संभव नहीं है।
मयंक शेखर ने बताया कि, आज हमारी सबसे बड़ी समस्या है कि, हमारे पास पुरानी फिल्मों का संग्रह नहीं है।
डॉ. दिवेदी ने बताया कि सिनेमा में कलाओं का संग्रह है। यह सामूहिकता को साधने का एक माध्यम है। ये समूह के माध्यम से समूह के लिए किया गया एक काम है।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत डॉ. नीलमेघ चतुर्वेदी, व डाॅ. लखन रघुवंशी आदि ने किया।
🔹सिनेमा ने ही मुझे प्रेरित किया-श्री किरकिरे

हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध गीतकार स्वानंद किरकिरे ने सीधी चर्चा में बताया कि, सिनेमा ने ही मुझे सिनेमा के लिए प्रेरित किया। सिनेमा आधुनिक लोक कला है। उसकी विकृति ही उसके विकास का कारण है। चाहे वो आज का सिनेमा हो या पुराना, सभी ने सिनेमा को एक नया आयाम दिया है। उन्होंने कहा कि, अब तो युवाओं द्वारा बहुत ही अच्छी शॉर्ट फिल्म बनाई जा रही है।