ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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एक बूढ़ा बरगद का पेड़,
जिसको शायद पता नहीं कि
कुछ दिनों बाद उसे,
अपनी जगह से हटा दिया जाएगा
क्योंकि उसे भी अतिक्रमण हटाने की,
कवायद का शिकार होना है
विकास का पथ प्रशस्त करना है।
एक लम्बी सड़क बना दी जाएगी,
आज जहां राहगीर करते हैं विश्राम
बच्चे जिसके नीचे खेलते-कूदते,
अठखेलियां करते हैं
पक्षी भी जहां कलरव करते हैं,
मवेशी भी जहां जीवन का गान सुनते हैं
कुछ दिनों बाद वहां,
‘दुर्घटना स्थल’ का बैनर लगा दिया जाएगा।
गिद्ध और कौवों का महाभोज होगा,
बेचारे बरगद की जगह
जो कि आज राहगीरों के लिए,
माँ का सा आँचल फैलाए
अपनी ममता की छाँव लिए खड़ा है।
और शायद यह कह रहा है कि,
आओ तुम सब मेरे हो,मेरे अपने हो…॥