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बसंत का मौसम मनभावन

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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आया मनभावन बसंत….

पीत प्रसून छाई हरियाली,
कूक लगाती कोयल काली
गुन-गुन भंवरे करते गुंजन,
बसंत का मौसम मनभावन।

माँ धंवला का जन्म मास भी,
मौसम बना मन-उमंग खास ही
देव मानव सप्त सुरों ऊंचारे,
स्वर देवी की सुर लहरियाँ तारें
शीत कम हुई धूप खिली है
धूजनी से अब राहत मिली है,
कहते बसंत कोपल का खिलना
पर पहले पत्तों का खिरना,
भूत नष्ट, भविष्य उदय है
यही तो विधि चक्रसमय है,
सरसों धनिया खेतों में महके
गेहूं दलहन से धरती लहके,
नभ पर सफेद काले से बादल
कभी गर्मी कभी शरद की हलचल,
उपवन में भंवरों की गुंजन।
बसंत का मौसम मनभावन…

जंगल आज पलाश के लाल,
आम्र मंजरियाँ खूबसूरत कमाल
प्रकृति ने ली है अंगड़ाई,
ओर-ठोर हरियाली छाई
नदियाँ बहती छल-छल कल-कल,
रूप प्रकृति बदले पल-पल
वनस्पतियों ने चोला बदला,
छोड़ पुरातन नया व उजला
मन करता उड़ान भरूं मैं,
पंछी उन्मुक्त वैसा ही उडूं मैं
नभ से धरा सुंदरता निहारूं,
मन उमंगित, तन से क्यों ठहरूं
आज आनंद छाया हर तन-मन।
बसंत का मौसम मनभावन…

ऋतुराज, पर राज नहीं अब,
जैसा कल था आज नहीं सब
प्रदूषित-धूमिल आबो-हवा में,
प्रकृति बस लगती है बेबस
आओ! प्रयास कुछ ऐसा करें हम,
सहेज प्रकृति स्वस्थ हों हरदम
ऋतु बदले, मन उमंग से मचले,
वातावरण निश्छल और पावन।
‘अजस्र’ सुंदर खिलता हर आँगन,
बसंत का मौसम मनभावन…॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|