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सीताराम येचुरी को पत्र

निर्मलकुमार पाटोदी

इन्दौर(मध्यप्रदेश)

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सेवा में

मा.सीताराम जी येचुरी,

महासचिव,

भारतीय मार्क्सवादी पार्टी,

नई दिल्ली।

विषय:हिंदी भाषा को अनिवार्य करने के विषय में आपका बयान।

संदर्भ:२६ जून २०१९ के नवभारत टाइम्स का समाचार।

आपके वक्तव्य में है कि-“स्नातक पाठ्यक्रमों में हिंदी को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल करने की यूजीसी की कोशिश अन्य भाषाई समूहों के लिए बहुत सारी समस्याएँ खड़ी करेगी और इससे देश की एकता प्रभावित हो सकती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-२०१९ के मसौदे के तहत हिंदी को थोपने के प्रयासों के ख़िलाफ़ देशभर में प्रदर्शन की पृष्ठभूमि में यह पत्र जारी किए जाने से देशवासियों में असंतोष है। कृपया इस संबंध में निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देने का कष्ट करें।

#आदरणीय आप जिस मार्क्सवादी दल से जुड़े हैं और उस दल का जन्म जिस धरती पर हुआ है,वह सोवियत रूस है। दूसरा रूस की साम्यवादी विचारधारा को चीन ने अपनाया है। आपके दल की पृष्ठभूमि भारत नहीं,रूस और चीन है।

#आप जानते हैं कि रूस और चीन ने अब तक जो विकास किया है,उसका आधार क्रमश:रूसी और चीन की मंदारिन भाषाएँ हैं। दुनिया के बीस सर्वाधिक विकसित देश भी वही हैं,जो अपने देश की भाषा में काम करते हैं। अपनी भाषाओं की उपेक्षा कर,हर कार्य के लिए अंग्रेज़ी भाषा को अपनाने के कारण हमारा देश दुनिया के उन्नत देशों की तुलना में बहुत पीछे है। आप जानते हैं कि स्वभाविक विकास और मौलिक चिंतन स्वभाषा में ही संभव है। और जब हमने एक राष्ट्र बनाया है तो राष्ट्रीय एकता व संपर्क के लिए हमारी एक भाषा तो होनी चाहिए। हालांकि,विदेशी संपर्क व विदेशी ज्ञान-विज्ञान के लिए अंग्रेजी पढ़ाने से हमारा कोई विरोध नहीं है।

#जनतंत्र में जनता का काम जनता की भाषा में न होना जनतंत्र के साथ धोखा है,लेकिन ग़ुलाम मानसिकता के कारण भारत में स्वाधीनता के बाद भी विकास का,शिक्षा का,न्याय का और प्रशासन संबंधी सारा काम-काज जनभाषा के बजाए विदेशी भाषा अंग्रेज़ी में होता आ रहा है।

#स्वाधीनता के बाद भी अंग्रेजों की नीति पर चल कर भारतीय भाषाओं को आपस में लड़ा कर,इन्हें पीछे धकेल कर अंग्रेजी का साम्राज्य स्थापित किया गया है। इसलिए,यह उचित होगा कि आप और आपका दल अब देश के सभी कार्य देश की संविधान सम्मत भाषाओं में(राष्ट्र के स्तर पर संघ की राजभाषा हिंदी में तथा राज्यों के स्तर पर राज्यों की राजभाषाओं में)करवाए।

#आपकी और आपके दल के नीति-निर्माताओं की शिक्षा तथा काम-काज की भाषा भी अंग्रेज़ी रही है,जबकि सभी चुनावों में चुनाव प्रचार में मत मतदाताओं की भाषा में माँगे गए हैं,यदि अंग्रेज़ी में बोल कर मत माँगे जाते,तो कभी एक भी उम्मीदवार चुनाव जीत नहीं पाता।

#संसद में आपके दल के अधिकांश सदस्य अपनी भावना विदेशी भाषा,अंग्रेज़ी में प्रकट करते हैं। आपने मतदाताओं की या देश की भाषा में बोलने की सुविधा का लाभ नहीं लिया। संसद में आपके दल के सदस्य देश की भाषा में बोलते तो देश के मतदाताओं को मालूम पड़ता कि उनके प्रतिनिधि उनके और देश के बारे में क्या कह रहे हैं ? इससे आपके दल को काफी नुकसान पहुंचा है।

#किसी देश की राष्ट्रीयता का आधार उसकी भाषा-संस्कृति होती है। इसलिए,सभी देश अपनी भाषा-संस्कृति को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं। भारतीयता,भारतीय भाषाओं,भारतीय संस्कृति से जुड़ी सभी बातों के निरंतर विरोध के चलते देशवासियों में यह धारणा पनपती गई है कि आपका दल भारत-विरोधी है। जनभावनाओं की उपेक्षा का ही परिणाम है कि देश से धीरे-धीरे वाम दलों का जनाधार खिसकता गया और आज लुप्त होने की कगार पर है।

#यदि आपकी और आपके दल की देश के संविधान और संसद में आस्था है तो कृपया इस संबंध में संविधान का अनुच्छेद ३५१ तथा संसद द्वारा पारित राजभाषा संकल्प १९६८ में वर्णित त्रिभाषा सूत्र देखने का कष्ट करें। शिक्षा का सर्वोत्म माध्यम क्या होता है,इस संबंध में विश्व के सभी शिक्षाविदों,चिंतकों,दार्शनिकों,विद्वानों व वैज्ञानिकों के विचार भी जानेंए।

#इसलिए,जनतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करते हुए न केवल राष्ट्र-हित में बल्कि,आपके अपने दल के राजनीतिक हितों के लिए भी यह उचित होगा कि आप और आपका दल अब जनता के सभी कार्य देश की संविधान सम्मत भाषाओं में,अर्थात राष्ट्र के स्तर पर संघ की राजभाषा हिंदी में तथा राज्यों के स्तर पर राज्यों की राजभाषाओं में करवाने का प्रयास करें।

#अत:आप जैसे कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता,लेखक,चिंतक, अर्थशास्त्री से यह अपेक्षा करना अनुचित न होगा कि आप देश और जनहित में निर्णय लेकर भारतीय भाषाओं के बीच समन्वय व एकता स्थापित करें,और उनकी आवाज बनें। कृपया लिए गए निर्णयों से अवगत करवाकर अनुगृहित करें।

हार्दिक शुभकामनाओं सहित, सादर!

निर्मलकुमार पाटोदी,

उपाध्यक्ष,वैश्विक हिंदी सम्मेलन

इन्दौर,मध्यप्रदेश

 

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