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बादल

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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हृदय क्षितिज में घर्राते बादल,
गर्जना छोड़, बरसात बरसा
तृषित धारा के रोम-रोम की,
आज प्रिये तू, प्यास बुझा।

सुकून मिले अब विरहिणी को,
और न इसको यूँ ही तड़पा
सोया सपना, अलसाई आँखें,
निज नेह से प्रिय तू, अब तो जगा।

है यौवन की पीड़ा, सावन-भादो की क्रीड़ा,
दादुर, मोर और पपीहरा के शोर
मानस पटल पर आग लगी है,
दिल को लूट ले गया कोई, श्यामरा चोर।

कटे न कटती है रातें काली,
दिन, न सांझ, न कटती है भोर
प्रेम की लगी है प्यास प्रिये अब,
रूप से रूह का रुख, करो इस ओर।

चंद लम्हों के मिलन से क्या होगा ?
नीर नीरद का बह जाने दे
मन की बातें मन मांझ रहे न,
रोक न मुझे, सब कह जाने दे।

दिन चार की है ये जिंदगानी सबकी,
कहने को हैं प्रिये, बहुतेरी बातें
इक बार गुजरे दिन, जिंदगी के तो,
फिर बहुर न लौट के आते।

है जीवन वही जो दिल से जिया,
फिर न पछताना कि, अभी कुछ न किया
आज माहौल प्रलय की मानिंद बना है,
कुछ हमने करा है, कुछ कुदरत ने किया है।

रह न जाए कुछ अधूरी बातें,
जीवन प्रिये अब थोड़ा है
घनघोर घटा कुछ यूँ न बरसाना,
जिन्होंने, सब्र-बांध ही तोड़ा है।

हो जाने दे रिमझिम बारिश,
बरसात तो प्रिय अब आनी है
विरह बदरी बन घुमड़ रहा है,
आत्म निवेदन-नेह का पानी है।

घनश्याम पिया के संदेशे ले-ले,
आती नीरद की जलधारा है
कब तक, विरहिणी वेदना झेले ?
यह जीवन कितना प्यारा है ?

भीग जाने दे दिल के दरी खाने,
कलेजा भी ठंडा हो जाए
मिल जाने दे नदी समंदर में,
एक-दूजे में प्रिये बस खो जाने दे।

सिर्फ गरजते मत रहना रेे ओ बादल,
बरसात तो अब तू आने दे।
सदियों पुराना बिछड़ा यार,
रूह को अब तो तू पाने दे॥

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