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मैं शिक्षक निर्माणक हूँ

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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शिक्षक दिवस विशेष …………
शिक्षण हेतु बना मैं शिक्षक,
नीति-रीति पथ परिपोषित
विनयशील हो त्याग समन्वित
नवयुग का नव वीक्षक हूँ।
नवजातों व नवांकुरों के
नवजीवन का संरक्षक हूँ,
सिंचन वर्धन ज्ञानामृत से
सुफल सुपात्र निर्माणक हूँ।
पुराकाल गुरुकुल से लेकर
नवयुगीन शिक्षा पद्धति तक,
लक्ष्य मात्र शिक्षण जीवन नित
‘तमसो मा ज्योतिर्मय गमय’
यह दिव्य अलख जगाई है।
रस सदाचार व सद्विचार का
आगत भविष्य को ज्ञान घूंट पिला,
अर्थनीति सह धर्मनीति का
सदियों से आज तलक,
सारस्वत ज्ञान विहार कराया है।
ज्ञानक्षीर अरु विवेक नीर से,
गोविन्द श्रेष्ठ बन नवयुवा चमन को
सुरभित सुन्दर पुष्प सजाया है।
सुखद समुन्नत नित यश सौरभ से
नवपीढ़ी को नवनीत बनाकर,
भारत गौरव गाथा मैंने गाई है।
सदा निरत बन परहित शिक्षक,
बुद्धिमान् और बुद्धि विशारद
शुक्र,धौम्य,कृप,गुरु,संदीपनि,
गुरु वशिष्ठ रत्नाकर भार्गव सम्पूजित
त्याग तपस्या रत संघर्षक,
श्री राम,कृष्ण अरु पार्थ महार्णव
इतिहास पुरुष निर्माणक हूँ।
प्रकृति सिद्ध निश्छल मनभावक,
श्रावक नायक शुद्ध विनायक
सार्थवाह नित पथ प्रदर्शक,
युग परिवर्तक आलोकित शिक्षक हूँ।
सदा समादृत सामाजिक में,
ज्ञानामृत उस चरणामृत को
शिष्यवृन्द ले शीश झुकाकर,
सुन्दर जीवन निर्माणक रत्नाकर हूँ।
सतत् विचारक उद्यम प्रतीक मैं
देश काल जन भाग्य विधायक,
नित्य चिरन्तन मानक शाश्वत मैं
दिग्दर्शक जनमन भावन अनुपम,
यायावर संवाहक पावन शिक्षक हूँ।
किन्तु आज मैं बदल गया हूँ
भौतिकता संलिप्त हुआ हूँ,
गुरुता पर लघुता नैतिकता
ज्ञान तिमिर में बदल गया हूँ,
धनलोलुप नित अहंकार रत
गरिमा गुरुता सम्पूज्य जगत में,
मैं शिक्षक अब भूल गया हूँ।
मातु-पिता,अभिभावक,भाई,
मीत प्रीत समभाव समाहित
निज गुरुत्व गुरुता सम्मानित,
वात्सल्य,दया,ममता समता नित
अपनापन भाव समन्वित चितवन,
संरक्षक अनुशासक संचालक
रनिवासर मैं अग्रदूत गुरु,
शान्त धीर व्यक्तित्व मनोहर
गाम्भीर्य प्रकृति मृदुभाषक अविरत,
अध्यापक विस्मृत कर आया हूँ।
वरदान मिला प्रभु,मैं शिक्षक हूँ,
आचार्य कहो गुरु इल्मकार भी
सप्तसिन्धु विज्ञानक नवरस,
दशा दिशा मानवता परिवर्तक
नवयुग का निर्माणक सत्पथ,
आदर्श पुरुष बन छाया हूँ।
यायावर ईमान साँच पथ,
आलोक ज्ञान गुरु बन आया हूँ॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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